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औपपातिकसूत्र
(चूडामणिः फणी वज्रं गरुडः घटोऽश्वो वर्द्धमानश्च य।
मकरः सिंहो हस्ती असुरादीनां मुण चिह्नानि ॥) पन्नवणा में भी यह प्रसंग चर्चित हुआ है। तदनुसार असुरकुमार का चिह्न चूडामणि, नागकुमार का नागफण, सुवर्णकुमार का गरुड, विद्युत्कुमार का वज्र, अग्निकुमार का पूर्ण कलश, द्वीपकुमार का सिंह, उदधिकुमार का अश्व, दिशाकुमार का हाथी, पवनकुमार का मगर तथा स्तनितकुमार का वर्द्धमानक है।' शेष भवनवासी देवों का आगमन
३४- तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरिंदवजिया भवणवासी देवा अंतियं पाउब्भवित्था—णागपइणो, सुवण्णा, विजू, अग्गी य दीव-उदही, दिसाकुमारा य पवणथणिया य भवणवासी, णागफडा-गरुल-वइर-पुण्णकलस-सीह-हय-गय-मार-मउड-वद्धमाण-णिजुत चिंधगया, सुरूवा, महिड्डिया जाव (महज्जुइया, महब्बला, महायसा, महासोक्खा, महाणुभागा, हारविराइयवच्छा, कडगतुडियर्थभियभुया, अंगय-कुण्डलमट्ठगंडतला, कण्णपीढधारी, विचित्तहत्थाभरणा, विचित्तमालामउलिमउडा, कल्लाणग-पवर-वत्थपरिहिया, कल्लाणग-पवर-मल्लाणुलेवणा, भासुरबोंदी, पलंबवणमालधरा, दिव्वेणं वण्णेणं, दिव्वेणं गंधेणं, दिव्वेणं रूवेणं, एवं फासेणं, संघाएणं संठाणेणं, दिव्वाए इड्डीए, जुईए, पभाए, छायाए, अच्चीए, दिव्वेणं तेएणं, दिवाए लेसाए दस दिसो उज्जोवेमाणा, पभासेमाणा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं आगम्मागम्म, रत्ता, समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति, णमंसंति, [वंदित्ता] णमंसित्ता [साइं साइं णामगोयाइं साति] णच्चासण्णे णाइदूरे सूस्सूसमाणा, णमंसमाणा, अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा) पज्जुवासंति।
___३४- उस काल, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के पास असुरेन्द्रवर्जित—असुरकुमारों को छोड़कर नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार तथा स्तनितकुमार जाति के भवनवासी—पाताललोक-स्थित अपने आवासों में निवास करने वाले देव प्रकट हुए। उनके मुकुट क्रमशः नागफण, गरुड, वज्र, पूर्ण कलश, सिंह, अश्व, हाथी, मगर तथा वर्द्धमानक-शराव सिकोरा अथवा स्कन्धारोपित-कन्धे पर चढ़ाया हुआ पुरुष थे। (वे सुरूप—सुन्दर रूप युक्त, परम ऋद्धिशाली, परम द्युतिमान्, अत्यन्त बलशाली, परम यशस्वी, परम सुखी तथा अत्यन्त सौभाग्यशाली थे। उनके वक्षःस्थलों पर हार सुशोभित हो रहे थे। वे अपनी भुजाओं पर कंकण तथा भुजाओं को सुस्थिर बनाये रखने वाली पट्टियाँ एवं अंगद भुजबन्ध धारण किये हुए थे। उनके मृष्ट-केसर, कस्तूरी आदि से मण्डित-चित्रित कपोलों पर कुंडल व अन्य कर्णभूषण शोभित थे। वे विचित्र-विशिष्ट या अनेकविध हस्ताभरण-हाथों के आभूषण धारण किये हुए थे। उनके मस्तकों पर तरह-तरह की मालाओं से युक्त मुकुट थे। वे कल्याणकृत-मांगलिक, अनुपहत या अखण्डित, प्रवर–उत्तम पोशाक पहने हुए थे। वे मंगलमय, उत्तम मालाओं एवं अनुलेपन–चन्दन, केसर आदि के विलेपन से युक्त थे। उनके शरीर देदीप्यमान थे। वनमालाएं सभी ऋतुओं में विकसित होने वाले फूलों से बनी मालाएं, उनके गलों से
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पनवणा पद २,२