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________________ अनगारों द्वारा उत्कृष्ट धर्माराधना ७७ अप्पेगइया आयारधरा, जाव (सूयगडधरा, ठाणधरा, समवायधरा, वियाहपण्णत्तिधरा, नायधम्मकहाधरा, उवासगदसाधरा, अंतगडदसाधरा, अणुत्तरोववाइयदसाधरा, पण्हावागरणधरा,) विवागसुयधरा, तत्थ तत्थ तहिं तहिं देसे देसे गच्छागच्छि गुम्मागुम्मि फड्डाफड्डिं अप्पेगइया वायंति, अप्पेगइया पडिपुच्छंति, अप्पेगइया परियटृति, अप्पेगइया अणुप्पेहंति, अप्पेगइया अक्खेवणीओ, विक्खेवणीओ, संवेयणीओ, णिव्वेयणीओ बहुविहाओ कहाओ कहंति, अप्पेगइया उड्जाणू, अहोसिरा, झाणकोट्ठोवगया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरंति। ३१- उस काल, उस समय जब भगवान् महावीर चम्पा में पधारे, उनके साथ अनेक अन्तेवासी अनगार—श्रमण थे। उनके कई एक आचार (सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण) तथा विपाकश्रुत के धारक थे। वे वहीं उसी उद्यान में भिन्नभिन्न स्थानों पर एक-एक समूह के रूप में, समूह के एक-एक भाग के रूप में तथा फुटकर रूप से विभक्त होकर अवस्थित थे। उनमें कई आगमों की वाचना देते थे आगम पढ़ाते थे। कई प्रतिपृच्छा करते थे—प्रश्नोत्तर द्वारा शंका-समाधान करते थे। कई अधीत पाठ की परिवर्तना—पुनरावृत्ति करते थे। कई अनुप्रेक्षा–चिन्तन-मनन करते थे। . उनमें कई आक्षेपणी मोहमाया से दूर कर समत्व की ओर आकृष्ट तथा उन्मुख करने वाली, विक्षेपणीकुत्सित मार्ग से विमुख करने वाली, संवेगनी-मोक्षसुख की अभिलाषा उत्पन्न करने वाली तथा निर्वेदनी संसार से निर्वेद, वैराग्य, औदासीन्य उत्पन्न करने वाली—यों अनेक प्रकार की धर्म कथाएँ कहते थे। उनमें कई अपने दोनों घुटनों को ऊँचा उठाये, मस्तक को नीचा किये—यों एक विशेष आसन में अवस्थित हो ध्यानरूप कोष्ठ में कोठे में प्रविष्ट थे—ध्यान-रत थे। ____ इस प्रकार वे अनगार संयम तथा तप से आत्मा को भावित-अनुप्राणित करते हुए अपनी जीवन-यात्रा चला रहे थे। . विवेचन— प्रस्तुत सूत्र से यह स्पष्ट है कि भगवान् महावीर के समय में श्रमणों में आगमों के सतत विधिवत् अध्ययन तथा ध्यानाभ्यास का विशेष प्रचलन था। जैसा यहाँ वर्णित हुआ है, भगवान् महावीर के अन्तेवासी श्रमण आवश्यकता एवं उपयोगिता के अनुसार बड़े-बड़े या छोटे-छोटे समूहों में अलग-अलग बैठ जाते थे, इक्के-दुक्के भी बैठ जाते थे और आगमों के अध्ययन, विवेचन, तत्सम्बन्धी चर्चा, विचार-विमर्श आदि में अत्यन्त तन्मय भाव से अपने को लगाये रखते थे। पठन-पाठन चिन्तन-मनन की बड़ी स्वस्थ परम्परा वह थी। ___जिन्हें ध्यान या योग-साधना में विशेष रस होता था, वे अपनी भावना, अभ्यास तथा धारणा के अनुरूप विभिन्न दैहिक स्थितियों में अवस्थित हो उधर संलग्न रहते थे। ३२- संसारभयउव्विग्गा, भीया, जम्मण-जर-मरण-करणगम्भीरदुक्खपक्खुब्भियपउरसलिलं, संजोग-विओग-वीचिचिंतापसंगपसरिय-वह-बंध-महल्लविउलकल्लोल-कलुणविलविय-लोभकलकलंतबोलबहुलं, अवमाणणफेण-तिव्व-खिंसण-पुलंपुलप्पभूय-रोग-वेयणपरिभव-विणिवाय-फरुसधरिसणासमावडियकढिणकम्मपत्थर-तरंगरंगंत-निच्चमच्चुभय-तोयपटुं, कसाय-पायालसंकुलं, भवसयसहस्स
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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