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________________ बात है, तब दोनों में अन्तर क्या है? उत्तर है कि संसारी आत्मा का चेतन अंश जीव कहलाता है और जड़ अंश कर्म कहलाता है। ये चेतन और जड़ अंश इस प्रकार के नहीं हैं जिनका संसार - अवस्था में अलग-अलग रूप में अनुभव किया जा सके। इनका पृथक्करण मुक्तावस्था में ही होता है । संसारी आत्म सदैव कर्मयुक्त ही होता है। जब वह कर्म से मुक्त हो जाता है तब वह मुक्त आत्मा कहलाता है । कर्म जब आत्मा से पृथक् हो जाता है तब वह कर्म नहीं पुद्गल कहलाता है। आत्मा से सम्बद्ध पुद्गल द्रव्यकर्म है और द्रव्यकर्मयुक्त आत्मा की प्रवृत्ति भावकर्म है। गहराई से चिन्तन करने पर आत्मा और पुद्गल के तीन रूप होते हैं— (१) शुद्ध आत्मा जो मुक्तावस्था में है। (२) शुद्ध पुद्गल (३) आत्मा और पुद्गल का सम्मिश्रण —— जो संसारी आत्मा में है। कर्म के कर्तृत्व और भोक्तृत्व का सम्बन्ध आत्मा और पुद्गल की सम्मिश्रण-अवस्था में है। आत्मा और कर्म का सम्बन्ध सहज जिज्ञासा हो सकती है कि अमूर्त आत्मा मूर्त कर्म के साथ किस प्रकार सम्बद्ध हो सकता है? समाधान है कि प्रायः सभी आस्तिक दर्शनों ने संसार और जीवात्मा को अनादि माना है अनादिकाल से वह कर्मों से बंधा हुआ ओर विकारी है। कर्मबद्ध आत्माएँ कथंचित् मूर्त हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो स्वरूप से अमूर्त होने पर भी संसारदशा में मूर्त हैं। जो आत्मा पूर्णरूप से कर्ममुक्त हो जाता है उसको कभी भी कर्म का बंधन नहीं होता । अतः आत्मा और कर्म का सम्बन्ध मूर्त का मूर्त के साथ होने वाला संबंध है। दोनों का अनादिकालीन सम्बन्ध चला आ रहा है। हम पूर्व में बता चुके हैं कि मूर्त मादक द्रव्यों का असर अमूर्त ज्ञान पर होता है वैसे ही विकारी अमूर्त आत्मा पर मूर्त कर्म- पुद्गलों का प्रभाव होता है । कर्म कौन बाँधता है? अकर्म के कर्म का बंधन नहीं होता। जो जीव पहले से ही कमों से बंधा है वही जीव नये कर्मों को बाँधता है। 46 मोहकर्म का उदय होने पर जीव राग-द्वेष में परिणत होता है और वह अशुभ कर्मों का बंध करता है । ५९ मोहरहित जो वीतराग जीव हैं वे योग के कारण शुभ कर्म का बन्ध करते हैं । ६० गौतम भगवन्! दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है या अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है। भगवन्— गौतम! दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है, अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट नहीं होता । दुःख का स्पर्श पर्यादान ( ग्रहण), उदीरणा वेदना और निर्जरा दुःखी जीव करता है, अदुःखी जीव नहीं करता । ६१ गौतम ने पूछा— भगवन्! कर्म कौन बाँधता है ? संयत असंयत अथवा संयतासंयत ? ५८. ५९. ६०. ६१. प्रज्ञापना २३ । १ । २९२ भगवती ९ भगवती ९ भगवती ७। १ २६६ [२५]
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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