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________________ नवम अध्ययन] [१०७ २५–तदनन्तर किसी समय मध्यरात्रि में कुटुम्ब सम्बन्धी चिन्ताओं में उलझी हुई (जागती हुई) देवदत्ता के हृदय में यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि इस प्रकार निश्चय ही पुष्यनंदी राजा अपनी माता श्रीदेवी का यह पूज्या है' इस बुद्धि से परम भक्त बना हुआ है। इस अवक्षेप विघ्न के कारण मैं पुष्यनन्दी राजा के साथ पर्याप्त रूप से मनुष्य सम्बन्धी विषयभोगों का उपभोग नहीं कर पाती हूँ। इसलिए अब मुझे यही करना योग्य है कि अग्नि, शस्त्र, विष या मन्त्र के प्रयोग से श्रीदेवी को जीवन से व्यपरोपित करके मार डाल कर महाराज पुष्यनन्दी के साथ उदार-प्रधान मनुष्य सम्बन्धी विषयभोगों का यथेष्ट उपभोग करूं।' ऐसा विचार कर वह श्रीदेवी को मारने के लिए अन्तर (जिस समय राजा का आगमन न हो), छिद्र (राजपरिवार के किसी सदस्य की जिस समय उपस्थिति न हो) और विवर (जिस समय कोई सामान्य मनुष्य भी न हो ऐसे अवसर) की प्रतीक्षा करती हुई विहरण करने लगी। २६—तए णं सा सिरीदेवी अन्नया कयाइ मज्जाइया विरहियसयणिजंसि सुहपसुत्ता जाया यावि होत्था। इमं च णं देवदत्ता देवी जेणेव सिरीदेवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, सिरि देविं मन्जाइयं विरहियसयणिजंसि सुहपसुत्तं पासइ, पासेत्ता दिसालोयं करेइ, करेत्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोहदण्डं परामुसइ, परामुसित्ता लोहदंडं तावेइ, तत्तं समजोइभूयं फुल्लकिंसुयसमाणं संडासएणं गहाय जेणेव सिरीदेवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरीए देवीए अवाणंसि पक्खिवइ। तए णं सा सिरीदेवी महया-महया सद्देणं आरसित्ता कालधम्मुणा संजुत्ता। २६—तदनन्तर किसी समय स्नान की हुई श्रीदेवी एकान्त में अपनी शय्या पर सुखपूर्वक सो रही थी। इधर लब्धावकाश देवदत्ता देवी भी जहाँ श्रीदेवी थी वहाँ पर आती है। स्नान व एकान्त में शय्या पर सुखपूर्वक सोई हुई श्रीदेवी को देखती है। देखकर दिशा का अवलोकन करती है अर्थात् कोई मुझे देख तो नहीं रहा है, यह निश्चय करने के लिए चारों तरफ देखती है। उसके बाद जहाँ भक्तगृह—रसोड़ा था वहाँ पर जाती है और जाकर लोहे के डंडे को ग्रहण करती है। ग्रहण कर लोहे के उस डंडे को तपाती है, तपाकर अग्नि के समान देदीप्यमान या खिले हुए किंशुक केसू के फूल के समान लाल हुए उस लोहे के दण्ड को संडासी से पकड़कर जहाँ श्रीदेवी (सोई) थी वहाँ आती है। आकर श्रीदेवी के अपान—गुदास्थान में घुसेड़ देती है। लोहदंड के घुसेड़ने से बड़े जोर के शब्दों से चिल्लाती हुई श्रीदेवी कालधर्म से संयुक्त हो गई मृत्यु को प्राप्त हो गई। २७–तए णं तीसे सिरीए देवीए दासचेडीओ आरसियसई सोच्चा निसम्म जेणेव सिरीदेवी तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता देवदत्तं देविं तओ अवक्कममाणिं पासंति, पासेत्ता जेणेव सिरीदेवी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सिरि देविं निप्पाणं निच्चेटुं जीवियविप्पजढं पासन्ति, पासित्ता 'हा हा अहो अकज्जं' इति कटु रोयमाणीओ कंदमाणीओ विलवमाणीओ जेणेव पूसनंदी राया तेणेव उवागच्छंति, उवाणच्छित्ता पूसनंदि रायं एवं वयासी एवं खलु, सामी! सिरीदेवी देवदत्ताए देवीए अकाले चेव जीवियाओ ववरोविया।' तए णं से पूसनंदी राया तासिं दासचेडीणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्मा महया माइसोएण
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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