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________________ १०८] [विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध अप्फुझण्णे समाणे परसुनियत्ते विव चंपग-वरपायवे धसत्ति धरणियलंसि सव्वंगेहिं संनिवडिए। २७ तदनन्तर उस श्रीदेवी की दासियाँ भयानक चीत्कार शब्दों को सुनकर अवधारण कर जहाँ श्रीदेवी थी वहाँ आती हैं और वहाँ से देवदत्ता देवी को निकलती हुई वापिस जाती देखती हैं। देखकर जिधर श्रीदेवी सोई हुई थी वहाँ आती हैं, आकर श्रीदेवी को प्राणरहित, चेष्टा रहित देखती हैं। देखकर—'हा! हा! अहो! बड़ा अनर्थ हुआ' इस प्रकार कहकर रुदन, आक्रन्दन तथा विलाप करती हुई, जहाँ पर पुष्यनंदी राजा था वहां पर जाती हैं। जाकर महाराजा पुष्यनन्दी से इस प्रकार निवेदन करती हैं—'निश्चय ही हे स्वामिन् ! श्रीदेवी को देवदत्ता देवी ने अकाल में ही जीवन से पृथक् कर दिया अर्थात् मार डाला है।' तदनन्तर पुष्यनन्दी राजा उन दासियों से इस वृत्तान्त को सुन समझ कर महान् मातृशोक से आक्रान्त होकर परशु से काटे हुए चम्पक वृक्ष की भांति धड़ाम से पृथ्वी-तल पर सर्व अङ्गों से गिर पड़ा। २८–तए णं से पूसनन्दी राया मुहुत्तन्तरेण आसत्थे वीसत्थे समाणे बहूहिं राईसर जाव सत्थवाहेहिं मित्त जाव परियणेणं सद्धिं रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे सिरीए देवीए महया इड्डी सक्कार-समुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता आसुरुत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए णवे मिसिमिसेमाणे देवदत्तं देविं पुरिसाहें गिण्हावेइ, एतणे विहाणेणं वझं आणवेइ। 'तं एवं खलु, गोयमा! देवदत्ता देवी पुरापोराणाणं जाव विहरइ।' २८–तदनन्तर एक मुहूर्त के बाद (थोड़े समय के पश्चात्) वह घुष्यनन्दी राजा आश्वस्त होश में आया। अनेक राजा-नरेश, ईश्वर ऐश्वर्ययुक्त, यावत् सार्थवाह व्यापारियों के नायकों तथा मित्रों यावत् परिजनों के साथ रुदन, आक्रन्दन व विलाप करता हुआ श्रीदेवी का महान् ऋद्धि तथा सत्कार के साथ निष्कासन कृत्य (मृत्यु-संस्कार) करता है। तत्पश्चात् क्रोध के आवेश में रुष्ट, कुपित, अंतीव क्रोधाविष्ट तथा लाल-पीला होता हुआ देवदत्ता देवी को राजपुरुषों से पकड़वाता है। पकड़वाकर इस पूर्वोक्त विधान से (जिसे तुम देख कर आए हो) 'यह वध्या-हंतव्या है ' ऐसी राजपुरुषों को आज्ञा देता है। इस प्रकार निश्चय ही, हे गौतम ! देवदत्ता देवी अपने पूर्वकृत अशुभ पापकर्मों का फल पा रही है। देवदत्ता का भविष्य २९ देवदत्ता णं भंते! देवी इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिइ? कहिं उववज्जि-हिइ ? गोयमा! अलीइं बासाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। संसारो। वणस्सई। तओ अणन्तरं उव्वट्टित्ता गंगपुरे नयरे हंसत्ताए पच्चायाहिइ।से णं तत्थ साउणिएहिं वहिए समाणे तत्थेव गंगपुरे नयरे सेट्टिकुलंसि उववज्जिहिइ। बोही। सोहम्मे। महाविदेहे वासे सिन्झिहिइ। निक्खेवो। २९—तब गौतम स्वामी ने प्रश्न किया—अहो भगवन् ! देवदत्ता देवी यहाँ से कालमास में काल करके कहाँ जायेगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ?
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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