________________
१०६]
[विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध मृदङ्ग बज रहे हैं, ऐसे ३२ प्रकार के नाटकों द्वारा उपगीयमान—प्रशंसित होते सानंद मनुष्य संबंधी शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंधरूप भोग भोगते हुए समय बिताने लगे।
२३तए णं से वेसमणे राया अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते। नीहरणं जाव राया जाव पूसनंदी।
२३ कुछ समय बाद महाराज वैश्रमण कालधर्म को प्राप्त हो गये। उनकी मृत्यु पर शोकग्रस्त पुष्यनन्दी ने बड़े समारोह के साथ उनका निस्सरण किया यावत् मृतक-कर्म करके राज सिंहासन पर आरूढ़ हुए यावत् युवराज से राजा बन गए।
२४ तए णं से पूसनंदी राया सिरीए देवीए माइभत्तए यावि होत्था। कल्लाकल्लि जेणेव सिरीदेवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरीए देवीए पायवडणं करेइ, करित्ता सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अभिगावेइ। अट्ठिसुहाए, मंससुहाए, तयासुहाए रोमसुहाए चउव्विहाए संवाहणाए संवाहावेइ संवाहावेता सुरभिणा गंधवट्टएणं उव्वट्टित्तावेइ, उव्वट्टावेत्ता तिहिं उदएहिं मज्जावेइ, तंजहा उसिणोदएणं, सीओदएणं, गन्धोदएणं। विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं भोयावेइ। सिरीए देवीए हायाए जाव पायच्छित्ताए जाव जिमियभुत्तुत्तरागयाए तए णं पच्छा पहाइ वा भुंजइ वा, उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंमाणे विहरइ।
२४-पुष्यनन्दी राजा अपनी माता श्रीदेवी का परम भक्त था। प्रतिदिन माता श्रीदेवी जहाँ भी हों वहाँ आकर श्रीदेवी के चरणों में प्रणाम करता और प्रणाम करके शतपाक और सहस्रपाक (सौ औषधों के तथा हजार औषधों के सम्मिश्रण से बने) तैलों की मालिश करवाता था। अस्थि को सुख देने वाले, मांस को सुखकारी, त्वचा की सुखप्रद और रोमों को सुखकारी ऐसी चार प्रकार की संवाहन–अंगमर्दन क्रिया से सुखशान्ति पहुँचाता था। तदनन्तर सुगन्धित गन्धवर्तक–बटने से उद्वर्तन करवाता अर्थात् बटना मलवाता। उसके पश्चात् उष्ण, शीत और सुगन्धित जल से स्नान करवाता, फिर विपल अशनादि चार प्रकार का भोजन कराता। इस प्रकार श्रीदेवी के नहा लेने यावत् अशुभ स्वप्नादि के फल को विफल करने के लिए मस्तक पर तिलक व अन्य माङ्गलिक कार्य करके भोजन कर लेने के अनन्तर अपने स्थान पर आ चुकने पर और वहाँ पर कुल्ला तथा मुखगत लेप को दूर कर परम शुद्ध हो सुखासन पर बैठ जाने के बाद ही पुष्यनन्दी स्नान करता, भोजन करता था तथा फिर मनुष्य सम्बन्धी उदार भोगों का उपभोग करता हुआ समय व्यतीत करता था।
___२५–तए णं तीसे देवदत्ताए देवीए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पन्ने—'एवं खलु पूसनंदी राया सिरीए देवीए माइभत्ते समाणे जावविहरइ।तं एएणं वक्खेवेणं नो संचाएमि पूसनंदिणा रन्ना सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरित्तए। तं सेयं खलु ममं सिरि देविं अग्गिप्पओगेण वा सत्थप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्तए, ववरोवेत्ता पूसनंदिणा रन्ना सद्धिं उरालाई माणुस्सगं भोगभोगाइं भुंजमाणीए विहरित्तए' एवं संपेहेइ संपेहित्ता सिरीए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणी विहरड्।