SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८] [विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध कुमारं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति। तए णं से उदायणकुमारे राया जाए महया हिमवतं०! ९–तदनन्तर किसी समय राजा शतानीक कालधर्म को प्राप्त हो गया। तब उदयनकुमार बहुत से राजा, तलवर, माडंबिक, कौटुंहिबक, इभ्य, श्रेष्ठी सेनापति और सार्थवाह आदि से साथ रोता हुआ, आक्रन्दन करता हुआ तथा विलाप करता हुआ शतानीक नरेश का राजकीय समृद्धि के अनुसार सम्मानपूर्वक नीहरण तथा मृतक सम्बन्धी सम्पूर्ण लौकिक कृत्यों को करता है। तदनन्तर उन राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि ने मिलकर बड़े समारोह के साथ उदयन कुमार का राज्याभिषेक किया। उदयनकुमार हिमालय पर्वत के समान महान् राजा हो गया। १०–तए णं से बहस्सइदत्ते दारए उदायणस्स रन्नो पुरोहियकम्मं करेमाणे सव्वट्ठाणेसु, सव्वभूमियासु, अंतेउरे य दिन्नवियारे जाव यावि होत्था।तए णं से बहस्सइदत्ते पुरोहिए उदायणस्स रन्नो अंतेउरंसि वेलासु य अववेलासु य, काले य अकाले य, राओ य वियाले य पविसमाणे अन्नया कयाइ पउमावईए देवीए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था। पउमावईए देवीए सद्धिं उरालाई भीगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। १०—तदनन्तर बृहस्पतिदत्त कुमार उदयन नरेश का पुरोहित हो गया और पौरोहित्य कर्म करता हुआ सर्वस्थानों, सर्वभूमिकाओं तथा अन्तःपुर में भी इच्छानुसार बेरोक-टोक गमनागमन करने लगा। तत्पश्चात् वह बृहस्पतिदत्त पुरोहित उदयन-नरेश के अन्तःपुर में समय-असमय, काल-अकाल तथा रात्रि एवं सन्ध्याकाल में स्वेच्छापूर्वक प्रवेश करते हुए धीरे-धीरे पद्मावती देवी के साथ अनुचित सम्बन्ध वाला हो गया। तद्नुसार पद्मावती देवी के साथ उदार यथेष्ट मनुष्य सम्बन्धी काम-भोगों को सेवन करता हुआ समय व्यतीत करने लगा। ११–इमं च णं उदायणे राया ण्हाए जावविभूसिए जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहस्सइदत्तं पुरोहियं पउमावइए देवीए सद्धिं उरालाई भोगभोगाइं भुंजमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते तिवलियं भिउडिं णिडाले साह? बहस्सइदत्तं पुरोहियं पुरिसेहिं गिण्हावेइ जाव (गिण्हावेत्ता अट्ठि-मुट्ठि-जाणु-कोप्परपहार-संभग्ग-महियगत्तं करेइ, करेत्ता अवओडय-बंधणं करेइ, करेत्ता) एएणं विहाणेणं वझं आणवेइ। एवं खलु गोयमा! बहस्सइदत्ते पुरोहिए पुरा पुराणाणं जाव विहरइ। ११—इधर किसी समय उदयन नरेश स्नानादि से निवृत्त होकर और समस्त अलङ्कारों से अलंकृत होकर जहाँ पद्मावती देवी थी वहाँ आया। आकर उसने बृहस्पतिदत्त पुरोहित को पद्मावती देवी के साथ भोगोपभोग भोगते हुए देखा। देखते ही वह क्रोध से तमतमा उठा। मस्तक पर तीन बल वाली भृकुटि चढ़ाकर बृहस्पतिदत्त पुरोहित को पुरुषों द्वारा पकड़वाकर यष्टि (अस्थि), मुट्ठी, घुटने, कोहनी, आदि के प्रहारों से उसके शरीर को भग्न कर दिया गया, मथ डाला और फिर इस प्रकार (जैसा कि तुमने
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy