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________________ पञ्चम अध्ययन] [६७ चार के, छह मास में आठ-आठ बालकों के और संवत्सर-वर्ष में सोलह-सोलह बालकों के हृदयों के मांसपिण्डों से शान्तिहोम किया करता था। जब-जब जितशत्रु राजा का किसी शत्रु के साथ युद्ध होता तबतब वह महेश्वरदत्त पुरोहित एक सौ आठ (१०८) ब्राह्मण बालकों, एक सौ आठ क्षत्रिय बालकों, एक सौ आठ वैश्य बालकों और एक सौ आठ शूद्र बालकों को अपने पुरुषों द्वारा पकड़वाकर और जीते जी उनके हृदय के मांसपिण्डों को निकलवाकर जितशत्रु नरेश की विजय के निमित्त शांतिहोम करता था। उसके प्रभाव से जितशत्रु राजा शीघ्र ही शत्रु का विध्वंस कर देता या उसे भगा देता था। ७ तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविजे एयसमायारे सुबहूं पावकम्मं समज्जिणित्ता तीसं वाससयं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा पंचमीए पुढवीए उक्कोसेण सत्तरससागरोवमट्टिइए नरगे उववन्ने। ७—इस प्रकार के क्रूर कर्मों का अनुष्ठान करने वाला, क्रूरकर्मों में प्रधान, नाना प्रकार के पापकर्मों को एकत्रित कर अन्तिम समय में वह महेश्वरदत्त पुरोहित तीन हजार वर्ष का परम आयुष्य भोगकर पांचवें नरक में उत्कृष्ट सत्तरह सागरोपम की स्थिति वाले नारक के रूप में उत्पन्न हुआ। वर्तमान भव ___८ से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव कोसंबीए नयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उववन्ने। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेन्जं करेंति 'जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स पुत्ते, वसुदत्ताए अत्तए, तम्हा णं होउ अहं दारए वहस्सइदत्ते नामेणं।' तए णं से बहस्सइदत्ते दारए पंचधाइपरिग्गहिए जाव परिवड्डइ। तए णं से वहस्सइदत्ते उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुप्पत्ते विन्नयपरिणयमेते होत्था। से णं उदायणस्स कुमारस्स पियबालवयस्सए यावि होत्था। सहजायए, सहवड्डियए, सहपंसुकीलियए। ८—तदनन्तर महेश्वरदत्त पुरोहित का वह पापिष्ठ जीव उस पांचवें नरक से निकलकर सीधा इसी कौशाम्बी नगरी में सोमदत्त पुरोहित की वसुदत्ता भार्या के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ। तत्पश्चात् उत्पन्न हुए उस बालक के माता-पिता ने जन्म से बारहवें दिन नामकरण संस्कार करते हुए कहा—वह बालक सोमदत्त का पुत्र और वसुदत्ता का आत्मज होने के कारण इसका बृहस्पतिदत्त यह नाम रक्खा जाए। तदनन्तर वह बृहस्पतिदत्त बालक पांच धायमाताओं से परिगृहीत यावत् वृद्धि को प्राप्त करता हुआ तथा बालभाव को पार करके युवावस्था को प्राप्त होता हुआ, परिपक्व विज्ञान को उपलब्ध किये हुए वह उदयन कुमार का बाल्यकाल से ही प्रिय मित्र हो गया। कारण यह था कि ये दोनों एक साथ ही उत्पन्न हुए, एक साथ बढ़े और एक साथ ही दोनों ने धूलि-क्रीडा की थी अर्थात् खेले थे। ९-तए णं से सयाणीए राया अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते। तए णं से उदायणं कुमारे बहूहिं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठी-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे, कन्दमाणे, विलवमाणे सयाणीयस्स रन्नो महया इड्डि-सक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूहिं लोइयाई मंयकिच्चाई करेइ। तए णं ते बहवे राईसर जाव सत्थवाहा उदायणं
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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