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________________ ३४] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : भु. १, अ.१ या युगों में उस की गणना नहीं की जा सकती। अतएव उसे उपमा द्वारा ही बतलाया जाता है । इसे जैन आगमों में उपमा-काल कहा गया है । वह दो प्रकार का है—पल्योपम और सागरोपम । पल्या अर्थ गड़हा-गड्ढा है । एक योजन (चार कोस) लम्बा-चौड़ा और एक योजन गहरा एक गड़हा हो। उसमें देवकुरु या उत्तरकुरु क्षेत्र के युगलिक मनुष्य के, अधिक से अधिक सात दिन के जन्मे बालक के बालों के छोटे-छोटे टुकड़ों से-जिनके फिर टुकड़े न हो सके, भरा जाए। बालों के टुकड़े इस प्रकार ठूस-ठूस कर भरे जाएँ कि उनमें न वायु का प्रवेश हो, न जल प्रविष्ट हो सके और न अग्नि उन्हें जला सके । इस प्रकार भरे पल्य में से सौ-सौ वर्ष के पश्चात् एक-एक बालाग्र निकाला जाए। जितने काल में वह पल्य पूर्ण रूप से खाली हो जाए, उतना काल एक पल्योपम कहलाता है । दस कोटाकोटी पल्योपम का एक सागरोपम काल होता है। एक करोड़ से एक करोड़ का गुणाकार करने पर जो संख्या निष्पन्न होती है उसे कोटाकोटी कहते हैं। नारक जीव अनेकानेक पल्योपमों और सागरोपमों तक निरन्तर ये वेदनाएँ भुगतते रहते हैं। कितना भयावह है हिंसाजनित पाप का परिणाम ! नारक जीवों की करुण पुकार २७–किं ते ? अविभाव सामि भाय बप्प ताय जियवं मुय मे मरामि दुब्बलो वाहिपीलिमोऽहं कि दाणिऽसि एवं दारुणो णिय ? मा देहि मे पहारे, उस्सासेयं मुहत्तं मे देहि, पसायं करेह, मा रुस वीसमामि, गेविज्जं मुयह मे मरामि गाढं तण्हाइप्रो अहं देहि पाणीयं । २७-(नारक जीव) किस प्रकार रोते-चिल्लाते हैं ? हे अज्ञातबन्धु ! हे स्वामिन् ! हे भ्राता ! अरे बाप ! हे तात ! हे विजेता ! मुझे छोड़ दो। मैं मर रहा हूँ। मैं दुर्बल हूँ ! मैं व्याधि से पीडित हैं। आप इस समय क्यों ऐसे दारुण एवं निर्दय हो रहे हैं ? मेरे ऊपर प्रहार मत करो। मुहूर्त भर-थोड़े समय तक सांस तो लेने दीजिए ! दया कीजिए । रोष न कीजिए । मैं जरा विश्राम ले लू। मेरा गला छोड़ दीजिए। मैं मरा जा रहा हूँ। मैं प्यास से पीडित हूँ। (तनिक) पानी दे दीजिए। विवेचन-नारकों को परमाधामी असुर जब लगातार पीड़ा पहुँचाते हैं, पल भर भी चैन नहीं लेने देते, तब वे किस प्रकार चिल्लाते हैं, किस प्रकार दीनता दिखलाते हैं और अपनी असहाय अवस्था को व्यक्त करते हैं, यह इस पाठ में वर्णित है । पाठ से स्पष्ट है कि नारकों को क्षण भर भी शान्ति-चैन नहीं मिलती है । जब प्यास से उनका गला सूख जाता है और वे पानी की याचना करते हैं तो उन्हें पानी के बदले क्या मिलता है, इसका वर्णन आगे प्रस्तुत है। नरकपालों द्वारा दिये जाने वाले घोर दुःख २८-हता पिय' इमं जलं विमलं सीयलं त्ति घेत्तण य णरयपाला तवियं तउयं से दिति कलसेण अंजलीसु ठूण य तं पवेवियंगोवंगा अंसुपगलंतपप्पुयच्छा छिण्णा तण्हाइयम्ह कलुणाणि १. 'ताहे तं पिय'-पाठभेद।
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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