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________________ ३२] [प्रश्नव्याकरणसूत्र शु. १, अ. १ उज्जल-(उज्ज्वल)-उजली अर्थात् सुखरूप विपक्ष के लेश से भी रहित-जिसमें सुख का तनिक भी सम्मिश्रण नहीं। बल-विउल (बल-विपुल)-प्रतीकार न हो सकने के कारण अतिशय बलवती एवं समग्र शरीर में व्याप्त रहने के कारण विपुल । उक्कड (उत्कट)-चरम सीमा को प्राप्त । खर-फरस (खर-परुष)-शिला आदि के गिरने पर होने वाली वेदना के सदृश होने से खर तथा कूष्माण्डी के पत्ते के समान कर्कश स्पर्श वाले पदार्थों से होने वाली वेदना के समान होने से परुष-कठोर । पयंड (प्रचण्ड)-शीघ्र ही समग्र शरीर में व्याप्त हो जाने वाली। घोर (घोर)-शीघ्र ही औदारिक शरीर से युक्त जीवन को विनष्ट कर देने वाली अथवा दूसरे के जीवन की अपेक्षा न रखने वाली (किन्तु नारक वैक्रिय शरीर वाले होते हैं, अतः इस वेदना को निरन्तर सहन करते हुए भी उनके जीवन का अन्त नहीं होता।) बोहणग (भीषणक)–भयानक-भयजनक । दारुण (दारुण)-अत्यन्त विकट, घोर।। यहाँ यह ध्यान में रखना चाहिए कि देवों की भांति नारकों का शरीर वैक्रिय शरीर होता है और उसका कारण नरकभव है। आयुष्य पूर्ण हुए बिना-अकाल में इस शरीर का अन्त नहीं होता। परमाधामी उस शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं तथापि वह पारे की तरह फिर जुड़ जाता है। देवों और नारकों की भाषा और मनःपर्याप्ति एक साथ पूर्ण होती है, अतः दोनों में एकता की विवक्षा कर ली जाती है । वस्तुतः ये दोनों पर्याप्तियाँ भिन्न-भिन्न हैं। नारकों को दिया जाने वाला लोमहर्षक दुःख २५–किं ते ? कंदुमहाकुभिए पयण-पउलण-तवग-तलण-भट्ठभज्जणाणि य लोहकडाहुकडगाणि य कोट्टबलिकरण-कोट्टणाणि य सामलितिक्खग्ग-लोहकंटग-अभिसरणपसारणाणि फालणविदारणाणि य अवकोडकबंधणाणि लट्ठिसयतालणाणि य गलगंबलुल्लंबणाणि सूलग्गभेयणाणि य पाएसपवंचणाणि खिसणविमाणणाणि विघुटुपणिज्जणाणि वज्झसयमाइकाणि य । २५–नारकों को जो वेदनाएँ भोगनी पड़ती हैं, वे क्या-कैसी हैं ? नारक जीवों को कंदु-कढाव जैसे चौड़े मुख के पात्र में और महाकुभी-सँकड़े मुखवाले घड़ा सरीखे महापात्र में पकाया और उबाला जाता है। तवे पर रोटी की तरह सेका जाता है। चनों की भांति भाड़ में भूजा जाता है। लोहे की कढ़ाई में ईख के रस के समान प्रौटाया जाता है। जैसे देवी के सामने बकरे की बलि चढ़ाई जाती है, उसी प्रकार उनकी बलि चढ़ाई जाती है उनकी काया के खंड-खंड कर दिए जाते हैं। लोहे के तीखे शूल के समान तीक्ष्ण कांटों वाले शाल्मलिवृक्ष
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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