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________________ ३०] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अं. १ नरक में घोर अंधकार सदैव व्याप्त रहता है । चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र आदि का लेशमात्र भी प्रकाश नहीं है। मांस, रुधिर, पीव, चर्बी आदि घृणास्पद वस्तुएँ ढेर की ढेर वहाँ बिखरी पड़ी हैं, जो अतीव उद्वेग उत्पन्न करती हैं । यद्यपि मांस, रुधिर आदि औदारिक शरीर में ही होते हैं और वहाँ औदारिक शरीरधारी मनुष्य एवं पंचेन्द्रिय तिर्यंच नहीं हैं, तथापि वहाँ के पुद्गल अपनी विचित्र परिणमनशक्ति से इन घृणित वस्तुओं के रूप में परिणत होते रहते हैं । इनके कारण वहाँ सदैव दुर्गन्ध-सड़ांध फैली रहती है जो दुस्सह त्रास उत्पन्न करती है। नरकों के कोई स्थान अत्यन्त शीतमय हैं तो कोई अतीव उष्णतापूर्ण हैं । जो स्थान शीतल हैं वे हिमपटल से भी असंख्यगुणित शीतल हैं और जो उष्ण हैं वे खदिर की धधकती अग्नि से भी अत्यधिक उष्ण हैं। नारक जीव ऐसी नरकभूमियों में सुदीर्घ काल तक भयानक से भयानक यातनाएँ निरन्तर, प्रतिक्षण भोगते हैं। वहाँ उनके प्रति न कोई सहानुभूति प्रकट करने वाला, न सान्त्वना देने वाला और न यातनाओं से रक्षण करने वाला है। इतना ही नहीं, वरन् भयंकर से भयंकर कष्ट पहुँचाने वाले परमाधामी देव वहाँ हैं, जिनका उल्लेख यहाँ 'जमपुरिस' (यमपुरुष) के नाम से किया गया है । ये यमपुरुष पन्द्रह प्रकार के हैं और विभिन्न रूपों में नारकों को घोर पीड़ा पहुँचना इनका मनोरंजन है। वे इस प्रकार हैं १. अम्ब-ये नारकों को ऊपर आकाश में ले जाकर एकदम नीचे पटक देते हैं। २. अम्बरीष–छुरी आदि शस्त्रों से नारकों के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके भाड़ में पकाने योग्य बनाते हैं। ३. श्याम-रस्सी से या लातों-घूसों से नारकों को मारते हैं और यातनाजनक स्थानों में पटक देते हैं। ४. शबल—ये नारक जीवों के शरीर को आँत, नसें और कलेजे आदि को बाहर निकाल लेते हैं। ५. रुद्र-भाला-बर्थी आदि नुकीले शस्त्रों में नारकों को पिरो देते हैं । इन्हें रौद्र भी कहते हैं । अतीव भयंकर होते हैं। ६. उपरुद्र –नारकों के अंगोपांगों को फाड़ने वाले, अत्यन्त ही भयंकर असुर। ७. काल-ये नारकों को कड़ाही में पकाते हैं । ८. महाकाल-नारकों के मांस के खण्ड-खण्ड करके उन्हें जबर्दस्ती खिलाने वाले अतीव काले असुर। ९. असिपत्र—अपनी वैक्रिय शक्ति द्वारा तलवार जैसे तीक्ष्ण पत्तों वाले वृक्षों का वन बनाकर उनके पत्ते नारकों पर गिराते हैं और नारकों के शरीर के तिल जितने छोटे-छोटे टुकड़े कर डालते हैं। १०. धनुष-ये धनुष से तीखे बाण फेंककर नारकों के कान, नाक आदि अवयवों का छेदन करते हैं और अन्य प्रकार से भी उन्हें पीड़ा पहुँचा कर आनन्द मानते हैं।
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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