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________________ २४] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अ.१ करते हैं, मुग्ध होकर हनन करते हैं, क्रुद्ध-लुब्ध-मुग्ध होकर हनन करते हैं, अर्थ के लिए घात करते हैं, धर्म के लिए-धर्म मान कर घात करते हैं, काम-भोग के लिए घात करते हैं तथा अर्थ-धर्मकामभोग तीनों के लिए घात करते हैं। विवेचनपृथक्-पृथक् जातीय प्राणियों की हिंसा के विविध प्रयोजन प्रदर्शित करके शास्त्रकार ने यहाँ सब का उपसंहार करते हुए त्रस एवं स्थावर प्राणियों की हिंसा के सामूहिक कारणों का दिग्दर्शन कराया है। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि पूर्व सूत्रों में बाह्य निमित्तों की मुख्यता से चर्चा की गई है और प्रस्तुत सूत्र में क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति आदि अन्तरंग वृत्तियों की प्रेरणा को हिंसा के कारण में चित्रित किया गया है। बाह्य और आभ्यन्तर कारणों के संयोग से ही कार्य की निष्पत्ति होती है। अन्तर में कषायादि दूषित वृत्तियां न हों तो केवल बाह्य प्रयोजनों के लिए हिंसा नहीं की जाती अथवा कम से कम अनिवार्य हिंसा ही की जाती है। साधु-सन्त हिंसा के बिना ही जीवन-निर्वाह करते हैं। इसके विपरीत अनेक सुसंस्कारहीन, कल्मषवृत्ति वाले, निर्दय मनुष्य मात्र मनोविनोद के लिए-मरते हुए प्राणियों को छटपटाते तड़फते देख कर आनन्द अनुभव करने के लिए अत्यन्त करतापूर्वक हिरण. खरगोश अादि निरपराध भद प्राणियों का घात कर में भी नहीं हिचकते । ऐसे लोग दानवता, पैशाचिकता को भी मात करते हैं। मूल में धर्म एवं वेदानुष्ठान के निमित्त भी हिंसा करने का उल्लेख किया गया है। इसमें मृढता-मिथ्यात्व ही प्रधान कारण है। बकरा. भैसा. गाय. अश्व प्रादि प्राणियों की अग्नि में में प्राहति देकर अथवा अन्य प्रकार से उनका वध करके मनुष्य स्वर्गप्राप्ति का मनोरथ मंसबा करता है। यह विषपान करके अमर बनने के मनोरथ के समान है। निरपराध पंचेन्द्रिय जीवों का जान-बूझकर क्रूरतापूर्वक वध करने से भी यदि स्वर्ग की प्राप्ति हो तो नरक के द्वार ही बंद हो जाएँ ! तात्पर्य यह है कि बाह्य कारणों से अथवा कलुषित मनोवृत्ति से प्रेरित होकर या धर्म मान कर-किसी भी कारण से हिंसा की जाए, यह एकान्त पाप ही है और उससे आत्मा का अहित ही होता है। हिंसक जन १९-कयरे ते ? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मा वाउरिया दीवित-बंधणप्पप्रोग-तप्पगलजाल-वीरल्लगायसीदब्भ-वग्गुरा-कूडछेलियाहत्था हरिएसा साउणिया य वीदंसगपासहत्था वणचरगा लुद्धगा महुघाया पोयघाया एणीयारा पएणीयारा सर-दह-दीहिय-तलाग-पल्लल-परिगालण-मलणसोत्तबंधण-सलिलासयसोसगा विसगरलस्स य दायगा उत्तणवल्लर-दवग्गि-णिद्दया पलीवगा कूरकम्मकारी। १९-वे हिंसक प्राणी कौन है ? शौकरिक-जो शूकरों का शिकर करते हैं, मत्स्यबन्धक—मछलियों को जाल में बांधकर मारते हैं, जाल में फँसाकर पक्षियों का घात करते हैं, व्याध--मृगों, हिरणों को फंसाकर मारने
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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