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________________ २२] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अं. 4 १५-भोजनादि पकाने, पकवाने, दीपक आदि जलाने तथा प्रकाश करने के लिए अग्निकाय के जीवों की हिंसा की जाती है । विवेचन-यहाँ भी वे सब निमित्त समझ लेने चाहिए, जिन-जिन से अग्निकाय के जीवों की विराधना होती है। वायुकाय की हिंसा के कारण १६-सुप्प-वियण-तालयंट-पेहुण-मुह-करयल-सागपत्त-वत्थमाईएहि प्रणिलं हिसंति । १६–सूर्प-सूप-धान्यादि फटक कर साफ करने का उपकरण, व्यजन—पंखा, तालवृन्त-- ताड़ का पंखा, मयूरपंख आदि से, मुख से, हथेलियों से, सागवान आदि के पत्ते से तथा वस्त्र-खण्ड आदि से वायुकाय के जीवों की हिंसा की जाती है। ___विवेचन–प्रस्तुत सूत्र में जिन-जिन कारणों से वायुकाय की विराधना होती है, उन कारणों में से कतिपय कारणों का कथन किया गया है । शेष कारण स्वयं ही समझे जा सकते हैं। . वनस्पतिकाय की हिंसा के कारण १७-अगार-परियार-भक्ख-भोयण-सयणासण-फलक-मूसल-उक्खल-तत - विततातोज्ज-वहणवाहण-मंडव-विबिह-भवण-तोरण-विडंग- देवकुल-जालय-द्धचंद-णिज्चूहग - चंदसालिय-वेतिय-णिस्सेणिदोणि-चंगेरी-खील-मंडक - सभा-पवावसहागंध-मल्लाणुलेवणं-अंबर-जुहणंगल-मइय-कुलिय-संदण-सीयारह-सगड-जाण-जोग्ग-अट्टालग-चरिय-दार-गोउर-फलिहा-जंत-सूलिय-लउड-मुसंढि- सयग्धी-बहुपहरणावरणुवक्खराणकए, प्रणेहि य एवमाइएहि बहूहि कारणसएहिं हिंसंति ते तरुगणे भणियाभणिए य एवमाई। १७–अगार-गृह, परिचार-तलवार की म्यान आदि, भक्ष्य-मोदक आदि, भोजनरोटी वगैरह, शयन–शय्या आदि, आसन-विस्तर-बैठका आदि, फलक-पाट-पाटिया, मूसल, अोखली, तत-वीणा आदि, वितत-ढोल आदि, आतोद्य–अनेक प्रकार के वाद्य, वहन-नौका आदि, वाहन-रथ-गाड़ी आदि, मण्डप, अनेक प्रकार के भवन, तोरण, विडंग-विटंक, कपोतपालीकबूतरों के बैठने के स्थान, देवकुल-देवालय, जालक-झरोखा, अर्द्धचन्द्र-अर्धचन्द्र के आकार की खिड़की या सोपान, नियूं हक-द्वारशाखा, चन्द्रशाला-अटारी, वेदी, निःसरणी–नसैनी, द्रौणीछोटी नौका, चंगेरी-बड़ी नौका या फलों की डलिया, खटा-खटी, स्तंभ खम्भा, सभागार, प्याऊ, आवसथ-आश्रम, मठ, गंध, माला, विलेपन, वस्त्र, युग-जूवा, लांगल-हल, मतिकजमीन जोतने के पश्चात् ढेला फोड़ने के लिए लम्बा काष्ठ-निर्मित उपकरणविशेष, जिससे भूमि समतल की जाती है, कुलिक विशेष प्रकार का हल-बखर, स्यन्दन–युद्ध-रथ, शिविका–पालकी, रथ, शकट-छकड़ा गाड़ी, यान, युग्य-दो हाथ का वेदिकायुक्त यानविशेष, अट्टालिका, चरिकानगर और प्राकार के मध्य का आठ हाथ का चौड़ा मार्ग, परिघद्वार, फाटक, आगल, अरहट आदि, शूली, लकुट--लकड़ी-लाठी, मुसुढी, शतघ्नी-तोप या महासिला जिससे सैकड़ों का हनन हो सके तथा अनेकानेक प्रकार के शस्त्र, ढक्कन एवं अन्य उपकरण बनाने के लिए और इसी प्रकार
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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