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[प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अं. 4 १५-भोजनादि पकाने, पकवाने, दीपक आदि जलाने तथा प्रकाश करने के लिए अग्निकाय के जीवों की हिंसा की जाती है ।
विवेचन-यहाँ भी वे सब निमित्त समझ लेने चाहिए, जिन-जिन से अग्निकाय के जीवों की विराधना होती है। वायुकाय की हिंसा के कारण
१६-सुप्प-वियण-तालयंट-पेहुण-मुह-करयल-सागपत्त-वत्थमाईएहि प्रणिलं हिसंति ।
१६–सूर्प-सूप-धान्यादि फटक कर साफ करने का उपकरण, व्यजन—पंखा, तालवृन्त-- ताड़ का पंखा, मयूरपंख आदि से, मुख से, हथेलियों से, सागवान आदि के पत्ते से तथा वस्त्र-खण्ड आदि से वायुकाय के जीवों की हिंसा की जाती है।
___विवेचन–प्रस्तुत सूत्र में जिन-जिन कारणों से वायुकाय की विराधना होती है, उन कारणों में से कतिपय कारणों का कथन किया गया है । शेष कारण स्वयं ही समझे जा सकते हैं। . वनस्पतिकाय की हिंसा के कारण
१७-अगार-परियार-भक्ख-भोयण-सयणासण-फलक-मूसल-उक्खल-तत - विततातोज्ज-वहणवाहण-मंडव-विबिह-भवण-तोरण-विडंग- देवकुल-जालय-द्धचंद-णिज्चूहग - चंदसालिय-वेतिय-णिस्सेणिदोणि-चंगेरी-खील-मंडक - सभा-पवावसहागंध-मल्लाणुलेवणं-अंबर-जुहणंगल-मइय-कुलिय-संदण-सीयारह-सगड-जाण-जोग्ग-अट्टालग-चरिय-दार-गोउर-फलिहा-जंत-सूलिय-लउड-मुसंढि- सयग्धी-बहुपहरणावरणुवक्खराणकए, प्रणेहि य एवमाइएहि बहूहि कारणसएहिं हिंसंति ते तरुगणे भणियाभणिए य एवमाई।
१७–अगार-गृह, परिचार-तलवार की म्यान आदि, भक्ष्य-मोदक आदि, भोजनरोटी वगैरह, शयन–शय्या आदि, आसन-विस्तर-बैठका आदि, फलक-पाट-पाटिया, मूसल, अोखली, तत-वीणा आदि, वितत-ढोल आदि, आतोद्य–अनेक प्रकार के वाद्य, वहन-नौका आदि, वाहन-रथ-गाड़ी आदि, मण्डप, अनेक प्रकार के भवन, तोरण, विडंग-विटंक, कपोतपालीकबूतरों के बैठने के स्थान, देवकुल-देवालय, जालक-झरोखा, अर्द्धचन्द्र-अर्धचन्द्र के आकार की खिड़की या सोपान, नियूं हक-द्वारशाखा, चन्द्रशाला-अटारी, वेदी, निःसरणी–नसैनी, द्रौणीछोटी नौका, चंगेरी-बड़ी नौका या फलों की डलिया, खटा-खटी, स्तंभ खम्भा, सभागार, प्याऊ, आवसथ-आश्रम, मठ, गंध, माला, विलेपन, वस्त्र, युग-जूवा, लांगल-हल, मतिकजमीन जोतने के पश्चात् ढेला फोड़ने के लिए लम्बा काष्ठ-निर्मित उपकरणविशेष, जिससे भूमि समतल की जाती है, कुलिक विशेष प्रकार का हल-बखर, स्यन्दन–युद्ध-रथ, शिविका–पालकी, रथ, शकट-छकड़ा गाड़ी, यान, युग्य-दो हाथ का वेदिकायुक्त यानविशेष, अट्टालिका, चरिकानगर और प्राकार के मध्य का आठ हाथ का चौड़ा मार्ग, परिघद्वार, फाटक, आगल, अरहट आदि, शूली, लकुट--लकड़ी-लाठी, मुसुढी, शतघ्नी-तोप या महासिला जिससे सैकड़ों का हनन हो सके तथा अनेकानेक प्रकार के शस्त्र, ढक्कन एवं अन्य उपकरण बनाने के लिए और इसी प्रकार