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हिंसा करने के प्रयोजन ]
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दुःखनिवारण करने के लिए खटमल आदि त्रीन्द्रियों का वध करते हैं, (रेशमी) वस्त्रों के लिए अनेक द्वन्द्रिय कीड़ों आदि का घात करते हैं ।
विवेचन-अनेक प्रकार के वाद्यों, जूतों, बटुवा, घड़ी के पट्टे, कमरपट्टे, संदूक, बैग, थैला आदि-आदि चर्मनिर्मित काम में लिये जाते हैं । इनके लिए पंचेन्द्रिय जीवों का वध किया जाता है, क्योंकि इन वस्तुओं के लिये मुलायम चमड़ा चाहिए और वह स्वाभाविक रूप से मृत पशुओं से प्राप्त नहीं होता । स्वाभाविक रूप से मृत पशुओं की चमड़ी अपेक्षाकृत कड़ी होती है । प्रत्यन्त मुलायम चमड़े के लिए तो विशेषतः छोटे बच्चों या गर्भस्थ बच्चों का वध करना पड़ता है । प्रथम गाय, भैंस आदि का घात करना, फिर उनके उदर को चीर कर गर्भ में स्थित बच्चे को निकाल कर उनकी चमड़ी उतारना कितना निर्दयतापूर्ण कार्य है । इस निर्दयता के सामने पैशाचिकता भी लज्जित होती है ! इन वस्तुओं का उपयोग करने वाले भी इस अमानवीय घोर पाप के लिए उत्तरदायी हैं । यदि वे इन वस्तुओं का उपयोग न करें तो ऐसी हिंसा होने का प्रसंग ही क्यों उपस्थित हो !
चर्बी खाने, चमड़ी को चिकनी रखने, यंत्रों में चिकनाई देने तथा दवा आदि में काम
आती है ।
मांस, रक्त, यकृत, फेफड़ा आदि खाने तथा दवाई आदि के काम में लिया जाता है । आधुनिक काल में मांसभोजन निरन्तर बढ़ रहा है । अनेक लोगों की यह धारणा है कि पृथ्वी पर बढ़ती हुई मनुष्यसंख्या को देखते मांस - भोजन अनिवार्य है । केवल निरामिष भोजन - अन्न- शाक आदि की उपज इतनी कम है कि मनुष्यों के आहार की सामग्री पर्याप्त नहीं है । यह धारणा पूर्ण रूप से भ्रमपूर्ण है । डाक्टर ताराचंद गंगवाल का कथन है- 'परीक्षण व प्रयोग के आधार पर सिद्ध हो चुका है कि एक पौंड मांस प्राप्त करने के लिए लगभग सोलह पौंड श्रन्न पशुनों को खिलाया जाता है । उदाहरण के लिए एक बछड़े को जन्म के समय जिसका वजन १०० पौंड हो, १४ महीने तक, जब तक वह ११०० पौंड का होकर बूचड़खाने में भेजने योग्य होता है, पालने के लिए १४०० पौंड दाना, २५०० पौंड सूखा घास, २५०० पौंड दाना मिला साइलेज और करीब ६००० पौंड हरा चारा खिलाना पड़ता है । इस ११०० पौंड के बछड़े से केवल ४६० पौंड खाने योग्य मांस प्राप्त हो सकता है । शेष हड्डी आदि पदार्थ अनुपयोगी निकल जाता है । यदि इतनी श्राहार-सामग्री खाद्यान्न के रूप में सीधे भोजन के लिए उपयोग की जाये तो बछड़े के मांस से प्राप्त होने वाली प्रोटीन की मात्रा से पांच गुनी अधिक मात्रा में प्रोटीन व अन्य पोषक पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं। इसलिए यह कहना उपयुक्त नहीं होगा कि मांसाहार से सस्ती प्रोटीन व पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं ।'
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डाक्टर गंगवाल आगे लिखते हैं- 'कुछ लोगों की धारणा है, यद्यपि यह धारणा भ्रान्ति पर आधारित है, कि शरीर को सबल और सशक्त बनाने के लिए मांसाहार जरूरी है । कुछ लोगों का यह विश्वास भी है कि शरीर में जिस चीज की कमी हो उसका सेवन करने से उसकी पूर्ति हो जाती है | शरीरपुष्टि के लिए मांस जरूरी है, इस तर्क के कई लोग मांसाहार की उपयोगिता सिद्ध करते हैं ।
आधार पर ही
किन्तु इसकी वास्तविकता जानने के लिए यह आवश्यक है कि शरीर में भोजन से तत्त्व प्राप्त करने की प्रक्रिया को समझ लिया जाए । भोजन हम इसलिए करते हैं कि इससे हमें शरीर की गतिविधियों के संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा या शक्ति प्राप्त हो सके । इस ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं वायु और सूर्य । प्राणवायु या प्राक्सीजन से ही हमारे भोजन की पाचनक्रिया