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________________ उपसंहार] [२६३ कुब्ज आदि होने के कारण टीकाकार ने उद्धृत किए हैं गर्ने वातप्रकोपेण, दोहदे वाऽपमानिते । भवेत् कुब्जः कुणिः पङ गुर्मू को मन्मन एव वा ।। अर्थात् गर्भ में वात का प्रकोप होने के कारण अथवा गर्भ का अपमान होने से - गर्भवती की इच्छा को पूर्ति न होने के कारण सन्तान कुबड़ी, टोंटी, लंगड़ी, गूगी अथवा मन्मन–व्यक्त उच्चारण न करने वाली होती है । मूल पाठ का आशय स्पष्ट है । पांचों भावनाओं का सार-संक्षेप यही है जे सद्द-रूव-रस-गंधमागए, फासे य संपप्प मणुण्ण-पावए। गेही परोसं न करेज्ज पंडिए, स होति दंते विरए अकिंचणे ।। अर्थात्-मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के प्राप्त होने पर जो पण्डित पुरुष राग और द्वेष नहीं करता, वही इन्द्रियों का दमनकर्ता, विरत और अपरिग्रही कहलाता है। ___ यहाँ एक महत्त्वपूर्ण बात यह ध्यान में रखनी चाहिए कि राग और द्वेष आभ्यन्तर परिग्रह हैं-एकान्तरूप से मख्य परिग्रह हैं। अतएव इन्हीं को लक्ष्य में रखकर अपरिग्रह व्रत की भावनाएँ प्रतिपादित की गई हैं। ॥ पंचम संवरद्वार समाप्त ॥
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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