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बत्तीस उपमाओं से मण्डित ब्रह्मचर्य]
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१२. इन्द्र का ऐरावण नामक गजराज जैसे सर्व गजराजों में श्रेष्ठ है, उसी प्रकार सब व्रतों
में ब्रह्मचर्य है। १३. ब्रह्मचर्य वन्य जन्तुओं में सिंह के समान प्रधान है। १४. ब्रह्मचर्य सुपर्णकुमार देवों में वेणुदेव के समान श्रेष्ठ है । १५. जैसे नागकुमार जाति के देवों में धरणेन्द्र प्रधान है, उसी प्रकार सर्व व्रतों में ब्रह्मचर्य
प्रधान है। १६. ब्रह्मचर्य कल्पों में ब्रह्मलोक कल्प के समान उत्तम है, क्योंकि प्रथम तो ब्रह्मलोक का
क्षेत्र महान है और फिर वहाँ का इन्द्र अत्यन्त शुभ परिणाम वाला होता है। १७. जैसे उत्पादसभा, अभिषेकसभा, अलंकारसभा, व्यवसायसभा और सुधर्मासभा, इन
पाँचों में सुधर्मासभा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य है। १८. जैसे स्थितियों में लवसप्तमा-अनुत्तरविमानवासी देवों की स्थिति प्रधान है, उसी
प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। १९. सब दानों में अभयदान के समान ब्रह्मचर्य सब व्रतों में श्रेष्ठ है । २०. ब्रह्मचर्य सब प्रकार के कम्बलों में कृमिरागरक्त कम्बल के समान उत्तम है। २१. संहननों में वज्रऋभषभनाराचसंहनन के समान ब्रह्मचर्य सर्वश्रेष्ठ है। २२. संस्थानों में चतुरस्रसंस्थान के समान ब्रह्मचर्य समस्त व्रतों में उत्तम है। २३. ब्रह्मचर्य ध्यानों में शुक्लध्यान के समान सर्वप्रधान है। २४. समस्त ज्ञानों में जैसे केवलज्ञान प्रधान है, उसी प्रकार सर्व व्रतों में ब्रह्मचर्यव्रत
प्रधान है। २५. लेश्याओं में परमशुक्ललेश्या जैसे सर्वोत्तम है, वैसे ही सब व्रतों में ब्रह्मचर्यव्रत
सर्वोत्तम है। २६. ब्रह्मचर्य व्रत सब व्रतों में इसी प्रकार उत्तम है, जैसे सब मुनियों में तीर्थकर उत्तम होते हैं । २७. ब्रह्मचर्य सभी व्रतों में वैसा ही श्रेष्ठ है, जैसे सब क्षेत्रों में महाविदेहक्षेत्र उत्तम है। २६. ब्रह्मचर्य, पर्वतों में गिरिराज समेरु की भाँति सर्वोत्तम व्रत है। २९. जैसे समस्त वनों में नन्दनवन प्रधान है, उसी प्रकार समस्त व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। ३०. जैसे समस्त वृक्षों में सुदर्शन जम्बू विख्यात है, उसी प्रकार समस्त व्रतों में ब्रह्मचर्य
विख्यात है। ३१. जैसे अश्वाधिपति, गजाधिपति और रथाधिपति राजा विख्यात होता है, उसी प्रकार
ब्रह्मचर्यव्रताधिपति विख्यात है। ३२. जैसे रथिकों में महारथी राजा श्रेष्ठ होता है, उसी प्रकार समस्त व्रतों में ब्रह्मचर्यव्रत ____सर्वश्रेष्ठ है।
इस प्रकार एक ब्रह्मचर्य की आराधना करने पर अनेक गुण स्वतः अधीन-प्राप्त हो जाते हैं । ब्रह्मचर्यव्रत के पालन करने पर निर्ग्रन्थ प्रव्रज्या सम्बन्धी सम्पूर्ण व्रत अखण्ड रूप से पालित हो जाते हैं, यथा-शील–समाधान, तप, विनय और संयम, क्षमा, गुप्ति, मुक्ति-निर्लोभता । ब्रह्मचर्यव्रत के प्रभाव से इहलोक और परलोक सम्बन्धी यश और कीति प्राप्त होती है। यह विश्वास का कारण है अर्थात् ब्रह्मचारी पर सब का विश्वास होता है । अतएव एकाग्र-स्थिरचित्त से तीन करण और