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________________ प्रतिपाद्य विषय प्रस्तुत प्रश्नव्याकरण में हिंसादि पांच आस्रवों और अहिंसा आदि पांच संवरों का वर्णन है । प्रत्येक का एक-एक अध्ययन में सांगोपांग विस्तार से प्राशय स्पष्ट किया है। जिस अध्ययन का जो वर्णनीय विषय है, उसके सार्थक नामान्तर बतलाये हैं। जैसे कि आस्रव प्रकरण में हिंसादि प्रत्येक प्रास्रव के तीस-तीस नाम गिनाये हैं और इनके कटुपरिणामों का विस्तार से वर्णन किया है। हिंसा प्रास्रव-अध्ययन का प्रारंभ इस प्रकार से किया है जारिसओ जनामा जह य कओ जारिसं फलं दिति । जे वि य करेंति पावा पाणवह तं निसामेह ॥ अर्थात् (सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं हे जम्बू ! ) प्राणवध (हिंसा) का क्या स्वरूप है ? उसके कौन-कौन से नाम हैं ? वह जिस तरह से किया जाता है तथा वह जो फल देता है और जोजो पापी जीव उसे करते हैं, उसे सुनो। तदनन्तर हिंसा के पर्यायवाची नाम, हिंसा क्यों, किनकी और कैसे ? हिंसा के करने वाले और दुष्परिणाम, नरक गति में हिंसा के कुफल, तिर्यंचगति और मनुष्यगति में हिंसा के कुफल का समग्र वर्णनं इस प्रकार की भाषा में किया गया है कि पाठक को हिंसा की भीषणता का साक्षात् चित्र दिखने लगता है। इसी हिंसा का वर्णन करने के प्रसंग में वैदिक हिंसा का भी निर्देश किया है एवं धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा का उल्लेख करना भी सूत्रकार भूले नहीं हैं। इसके अतिरिक्त जगत् में होने वाली विविध अथवा समस्त प्रकार की हिंसा-प्रवृत्ति का भी निर्देश किया गया है। हिंसा के संदर्भ में विविध प्रकार के मकानों के विभिन्न नामों का, खेती के साधनों के नामों का तथा इसी प्रकार के हिंसा के अनेक निमित्तों का भी निर्देश किया गया है। इसी संदर्भ में अनार्य-म्लेच्छ जातियों के नामों की सूची भी दी गई है। असत्य प्रास्रव के प्रकरण में सर्वप्रथम असत्य का स्वरूप बतलाकर असत्य के तीस सार्थक नामों का उल्लेख किया है। फिर असत्य भाषण किस प्रयोजन से किया जाता है और असत्यवादी कौन हैं, इसका संकेत किया है और अन्त में असत्य के कटुफलों का कथन किया है। सूत्रकार ने असत्यवादी के रूप में निम्नोक्त मतों के नामों का उल्लेख किया है१. नास्तिकवादी अथवा वामलोकवादी-चार्वाक, २. पंचस्कन्धवादी-बौद्ध, ३. मनोजीववादी-मन को जीव मानने वाले, ४. वायुजीववादी-प्राणवायु को जीव मानने वाले, ५. अंडे से जगत की उत्पत्ति मानने वाले, ६. लोक को स्वयंभूकृत मानने वाले, ७. संसार को प्रजापति द्वारा निर्मित मानने बाले, ८. संसार को ईश्वरकृत मानने वाले, ९. समस्त संसार को विष्णुमय मानने वाले, १०. आत्मा को एक, अकर्ता, वेदक, नित्य, निष्क्रिय, निर्गुण, निलिप्त मानने वाले, [ २२ ]
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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