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________________ १८८] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. २, अ. २ पद, जैसे 'पाचक' (पकाने की क्रिया करने वाला), धातु-क्रियावाचक भू-हो' आदि, स्वर-'अ, या' इत्यादि अथवा संगीतशास्त्र सम्बन्धी षड्ज, ऋषभ, गान्धार आदि सात स्वर, विभक्ति-प्रथमा प्रादि, वर्ण-'क, ख' आदि व्यंजनयुक्त अक्षर, इन से युक्त हो (ऐसा वचन बोलना चाहिए।) ___ त्रिकालविषयक सत्य दस प्रकार का होता है । जैसा मुख से कहा जाता है, उसी प्रकार कर्म से अर्थात् लेखन क्रिया से तथा हाथ, पैर, आँख आदि की चेष्टा से, मुह बनाना आदि प्राकृति से अथवा जैसा कहा जाए वैसी ही क्रिया करके बतलाने से अर्थात् कथन के अनुसार अमल करने से सत्य होता है। बारह प्रकार की भाषा होती है । वचन सोलह प्रकार का होता है। इस प्रकार अरिहन्त भगवान् द्वारा अनुज्ञात-आदिष्ट तथा सम्यक् प्रकार से विचारित सत्यवचन यथावसर पर ही साधु को बोलना चाहिए। विवेचन-उल्लिखित पाठ में सत्य की महिमा का विस्तारपूर्वक एवं प्रभावशाली शब्दों में वर्णन किया गया है, जो वचन सत्य–तथ्य होने पर भी किसी को पीडा उत्पन्न करने वाला अथवा अनर्थकारी होने से सदोष हो, वैसा वचन भी बोलने योग्य नहीं है । यह कथन अनेक उदाहरणों सहित प्रतिपादित किया गया है तथा किस प्रकार का सत्य भाषण करने योग्य है, इसका भी उल्लेख किया गया है । सत्य भाषा और वचन के भेद भी बतलाए गए हैं । इस सम्पूर्ण कथन से साधक के समक्ष सत्य का सुस्पष्ट चित्र उभर आता है । सत्य की महिमा का प्रतिपादन करने वाला अंश सरल-सुबोध है । उस पर अधिक विवेचन की आवश्यकता नहीं है । तथापि संक्षेप में वह महिमा इस प्रकार है सत्य की महिमा-सत्य सभी के लिए हितकर है, व्रतरूप है, सर्वज्ञों द्वारों दृष्ट और परीक्षित है, अतएव उसके विषय में किंचित् भी शंका के लिए स्थान नहीं है। उत्तम देवों तथा चक्रवर्ती आदि उत्तम मनुष्यों, सत्पुरुषों और महापुरुषों द्वारा स्वीकृत है। सत्यसेवी ही सच्चा तपस्वी और नियमनिष्ठ हो सकता है। वह स्वर्ग और अपवर्ग का मार्ग है। यथार्थता-वास्तविकता के ही साथ उसका सम्बन्ध है । जब मनुष्य घोर संकट में पड़ जाता है तब सत्य देवता की तरह उसकी रक्षा करता है। सत्य के लोकोत्तर प्रभाव से महासागर में पड़ा प्राणी सकुशल किनारा पा लेता है। सत्य चारों ओर भयंकर धू-धू करती आग की लपटों से बचाने में समर्थ है-सत्यनिष्ठ को आग जला नहीं सकती। उबलता हुअा लोहा, रांगा आदि सरलात्मा सत्यसेवी की हथेली पर रख दिया जाए तो उसका बाल बांका नहीं होता। उसे ऊँचे गिरिशिखर से पटक दिया जाए तो भी वह सुरक्षित रहता है। विकराल संग्राम में, तलवारों के घेरे से वह सकुशल बाहर आ जाता है। अभिप्राय यह है कि सत्य की समग्रभाव से आराधना करने वाले भीषण से भीषण विपत्ति से आश्चर्यजनक रूप से सहज ही छुटकारा पा जाते हैं। - सत्य के प्रभाव से विद्याएँ और मंत्र सिद्ध होते हैं। श्रमणगण, चारणगण, सुर और असुरसभी के लिए वह अर्चनीय है, पूजनीय है, आराधनीय है। सत्य महासागर से भी अधिक गम्भीर है, क्योंकि वह सर्वथा क्षोभरहित है। अटलता के लिहाज से वह मेरु पर्वत से भी अधिक स्थिर है। आह्लादजनक और सन्तापहारक होने से चन्द्रमण्डल से भी अधिक सौम्य है। सूर्य से भी अधिक
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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