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[प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अ. ५ ३. रूपकला-वस्त्र, भित्ति, रजत-स्वर्णपट्ट आदि पर रूप (चित्र) बनाना। ४. नाट्यकला-नाचने और अभिनय करने का ज्ञान । ५. गीतकला-गायन सम्बन्धी कौशल । ६. वाद्यकला-अनेक प्रकार के वाद्य बजाने की कला।
स्वरगत कला-अनेक प्रकार की राग-रागिनियों में स्वर निकालने की कला। ८. पुष्करगत कला–पुष्कर नामक वाद्यविशेष का ज्ञान । ९. समतालकला-समान ताल से बजाने की कला । १०. द्यूतकला-जुआ खेलने की कुशलता।। ११. जनवादकला--जनश्रुति एवं किंवदन्तियों को जानना । १२. पौरस्कृत्यकला-पांसे खेलने का ज्ञान । १३. अष्टापदकला-शतरंज, चौसर आदि खेलने का ज्ञान । १४. दकमृत्तिकाकला-जल के संयोग से मिट्टी के खिलौने आदि बनाना। १५. अन्नविधिकला-विविध प्रकार का भोजन बनाने का ज्ञान । १६. पानविधिकला-पेय पदार्थ तैयार करने की कुशलता। १७. वस्त्रविधि-वस्त्रों के निर्माण की कला। १८. शयनविधि-शयन सम्बन्धी कला। १९. आर्याविधि-आर्या छन्द बनाने की कला । २०. प्रहेलिका-पहेलियाँ बनाने, बूझने की कला, गूढार्थवाली कविता रचना । २१. मागधिका-स्तुतिपाठ करने वाले चारण-भाटों सम्बन्धी कला। २२. गाथाकला–प्राकृतादि भाषाओं में गाथाएँ रचने का ज्ञान । २३. श्लोककला-संस्कृतादि भाषाओं में श्लोक रचना । २४. गन्धयुक्ति-सुगंधित पदार्थ तैयार करना। २५. मधुसिक्थ-स्त्रियों के पैरों में लगाया जाने वाला महावर बनाना। २६. आभरणविधि-आभूषणनिर्माण की कला । २७. तरुणीप्रतिकर्म-तरुणी स्त्रियों के अनुरंजन का कौशल । २८. स्त्रीलक्षण-स्त्रियों के शुभाशुभ लक्षणों को जानने का कौशल । २९. पुरुषलक्षण-पुरुषों के शुभाशुभ लक्षणों को जानने का कौशल । ३०. हयलक्षण-घोड़ों के लक्षण पहचानना । ३१. गजलक्षण-हाथी के शुभाशुभ लक्षण जानना । ३२. गोणलक्षण-बैलों के शुभाशुभ लक्षण जानना । ३३. कुक्कुटलक्षण-मुर्गों के शुभाशुभ लक्षण जानना। ३४. मेढलक्षण-मेढों के लक्षणों को पहचानना। ३५. चक्रलक्षण-चक्र आयुध के लक्षण जानना। ३६. छत्रलक्षण-छत्र के शुभाशुभ लक्षण जानना। ३७. दण्डलक्षण-दण्ड के लक्षणों का परिज्ञान । ३८. असिलक्षण-तलवार, वर्डी आदि के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना ।