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________________ १२६] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : शु. १, अ. ४ भोग कर भी, अन्त तक भी तृप्ति नहीं पाता है। जीवन की अन्तिम वेला तक भी वह अतृप्त रह कर मरण को प्राप्त हो जाता है । इस प्रकार सामान्य रूप से सभी बलभद्रों और नारायणों से संबंध रखने वाले प्रस्तुत वर्णन में वर्तमान अवसर्पिणी काल में हुए नवम बलभद्र (बलराम) और नवम नारायण (श्रीकृष्ण) का उल्लेख भी आ गया है । इसकी चर्चा करते हुए टीकाकार श्री अभयदेवसूरि ने समाधान किया है कि-'राम केशव' का अर्थ इस प्रकार करना चाहिए-जिन बलभद्रों और नारायणों में बलराम एवं श्रीकृष्ण जैसे हुए हैं । यद्यपि इस अवसर्पिणी काल में नौ बलभद्र, और नौ नारायण हुए हैं किन्तु उनमें बलराम और श्रीकृष्ण लोक में अत्यन्त विख्यात हैं। उनकी इस ख्याति के कारण ही उनके नामों प्रादि का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है । सभी बलभद्र और नारायण, जैसा कि पूर्व में कहा गया है, चक्रवर्ती से प्राधी ऋद्धि आदि से सम्पन्न होते हैं। सभी पुरुषों में प्रवर-सर्वश्रेष्ठ, महान् बल और पराक्रम के धनी, असाधारण धनुर्धारी, महान् सत्वशाली, अपराजेय और अपने-अपने काल में अद्वितीय पुरुष होते हैं। प्रस्तुत में बलराम और श्रीकृष्ण से सम्बद्ध कथन भी नामादि के भेद से सभी के साथ लागू होता है। जैनागमों के अनुसार संक्षेप में उनका उल्लेख कर देना आवश्यक है, जो इस प्रकार है प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में ६३ शलाकापुरुष श्लाघ्य प्रशंसनीय असाधारण पुरुष होते हैं । इन श्लाघ्य पुरुषों में चौवीस तीर्थंकरों का स्थान सर्वोपरि होता है । वे सर्वोत्कृष्ट पुण्य के स्वामी होते हैं । चक्रवर्ती आदि नरेन्द्र और सुरेन्द्र भी उनके चरणों में नतमस्तक होते हैं, अपने आपको उनका किंकर मान कर धन्यता अनुभव करते हैं । तीर्थंकरों के पश्चात् दूसरा स्थान चक्रवत्तियों का है। ये बारह होते हैं। इनकी विभूति आदि का विस्तृत वर्णन पूर्व सूत्र में किया गया है । तीसरे स्थान पर वासुदेव और बलदेव हैं। इनकी समस्त विभूति चक्रवर्ती नरेश से आधी होती है । यथा-चक्रवर्ती छह खण्डों के अधिपति सम्राट होते हैं तो वासुदेव तीन खण्डों के स्वामी होते हैं। चक्रवर्ती को अधीनता में बत्तीस हजार नृपति होते हैं तो वासुदेव के अधीन सोलह हजार राजा होते हैं। चक्रवर्ती चौसठ हजार कामिनियों के नयनकान्त होते हैं तो वासुदेव बत्तीस हजार रमणियों के प्रिय होते हैं । इसी प्रकार अन्य विषयों में भी जान लेना चाहिए। __बलदेव-वासुदेव के समकालीन प्रति वासुदेव भी नौ होते हैं, जो वासुदेव के द्वारा मारे जाते हैं। बलराम और श्रीकृष्ण नामक जो अन्तिम बलभद्र और नारायण हुए हैं, उनसे सम्बद्ध कथन का स्पष्टीकरण इस प्रकार है ये दोनों प्रशस्त पुरुष यादवकुल के भूषण थे। इस कुल में दश दशार थे, जिनके नाम हैं(१) समुद्रविजय (२) अक्षोभ्य (३) स्तिमित (४) सागर (५) हिमवान् (६) अचल (७) धरण (८) पूरण (९) अभिचन्द्र और (१०) वसुदेव । १. अभयदेववृत्ति पृ. ७३, प्रागमोदयसमिति संस्करण।
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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