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________________ ११६] [ प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अ. ४ ८२–उस अब्रह्म नामक पापास्रव को अप्सराओं (देवांगनाओं) के साथ सुरगण (वैमानिक देव) सेवन करते हैं । कौन-से देव सेवन करते हैं ? जिनकी मति मोह के उदय से मोहित-मूढ बन गई है तथा असुरकुमार, भुजग-नागकुमार, गरुडकुमार (सुपर्णकुमार) विद्यत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार तथा स्तनितकुमार, ये दश प्रकार के भवनवासी देव (अब्रह्म का सेवन करते हैं।) अणपन्निक, पणपण्णिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाक्रन्दित, कूष्माण्ड और पतंग देव । (ये सब व्यन्तर देवों के प्रकार हैं-व्यन्तर जाति के देवों में अन्तर्गत हैं।) पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धर्व (ये आठ प्रकार के व्यन्तर देव हैं।) ___ इनके अतिरिक्त तिर्छ-मध्य लोक में विमानों में निवास करने वाले ज्योतिष्क देव, मनुष्यगण तथा जलचर, स्थलचर एवं खेचर-आकाश में उड़ने वाले पक्षी (ये पंचेन्द्रिय तिर्यंचजातीय जीव) अब्रह्म का सेवन करते हैं। जिनका चित्त मोह से ग्रस्त (प्रतिबद्ध) हो गया है, जिनकी प्राप्त कायभोग संबंधी तृष्णा का अन्त नहीं हुआ है, जो अप्राप्त कामभोगों के लिए तृष्णातुर हैं, जो महती-तीव्र एवं बलवती तृष्णा से बुरी तरह अभिभूत हैं-जिनके मानस को प्रबाल काम-लालसा ने पराजित कर दिया है, जो विषयों में गृद्ध-अत्यन्त आसक्त एवं अतीव मूछित हैं—कामवासना की तीव्रता के कारण जिन्हें उससे होने वाले दुष्परिणामों का भान नहीं है, जो अब्रह्म के कीचड़ में फंसे हुए हैं और जो तामसभाव-अज्ञान रूप जड़ता से मुक्त नहीं हुए हैं, ऐसे (देव, मनुष्य और तिर्यञ्च) अन्योन्य-परस्पर नर-नारी के रूप में अब्रह्म (मैथुन) का सेवन करते हुए अपनी आत्मा को दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय कर्म के पिंजरे में डालते हैं, अर्थात् वे अपने आप को मोहनीय कर्म के बन्धन से ग्रस्त करते हैं। विवेचन-उल्लिखित मूल पाठ में अब्रह्म-कामसेवन करने वाले सांसारिक प्राणियों का कथन किया गया है । वैमानिक, ज्योतिष्क, भवनवासी और व्यन्तर, ये चारों निकायों के देवगण, मनुष्यवर्ग तथा जलचर, स्थलचर और नभश्चर-ये तिर्यञ्च कामवासना के चंगुल में फंसे हुए हैं। देवों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है प्रस्तुत पाठ में अब्रह्मचर्य सेवियों में सर्वप्रथम देवों का उल्लेख किया गया है। इसका कारण यह प्रतीत होता है कि देवों में कामवासना अन्य गति के जीवों की अपेक्षा अधिक होती है। वे अनेक प्रकार से विषय-सेवन करते हैं।' इसे जानने के लिए स्थानांग सूत्र देखना चाहिए। अधिक विषयसेवन का कारण उनका सुखमय जीवन है । विक्रयाशक्ति भी उसमें सहायक होती है। यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वैमानिक देवों के दो प्रकार हैं-कल्पोपपन्न और कल्पातीत । बारह देवलोकों तक के देव कल्पोपपन्न और ग्रैवेयकविमानों तथा अनुत्तरविमानों के देव १. (क) कायप्रवीचारा पा ऐशानात् शेषा: स्पर्शरूपशब्दमन:प्रवीचारा द्वयोर्द्वयोः परेऽप्रवीचाराः । __ -तत्त्वार्थसूत्र चतुर्थ अ., सूत्र ८, ९, १० (ख) स्थानांगसूत्र, स्था. ३ उ. ३
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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