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________________ ९० ] [ प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्र. १, अ. ३ डिय - सीहणाया, छेलिय- विद्युट्ठक्कटुकंठ कयसद्दभीमगज्जिए, सयराह - हसंत-रुसंत-कलकलरवे श्रासूणियवयणरुद्दे भीमदसणाधरोट्ठगाढदट्ठे सप्पहारणुज्जयकरे श्रमरिसवसतिव्वरत्तणिद्दारितच्छे वेरदिट्ठि-कुद्धचिट्ठिय-तिल- कुडिलभिउडि- कयणिलाडे वहपरिणय-णरसहस्स-विक्कमवियंभियबले । वग्गंत तुरगरहपहाविय समरभडा श्रावडियछेयलाघव-पहारसाहियासमूसविय बाहु - जुयलमुक्कट्टहासपुक्कं तबोलबहुले । फलफलगाव रणग हिय-गयवरपत्थित-दरियभडखल - परोप्परपलग्ग जुद्धगव्विय-विउसियवरासिरोस - तुरियभिह-परत छिण्णकरिकर - विभंगियकरे श्रवइद्धणिसुद्ध भिण्णफालियपगलिय रुहिर-कयभूमि-कम- चिलिचिल्लपहे कुच्छिदालिय-गलंतरुलितणिभेलितंत-फुरुफुरंत प्रविगल-मम्माहय-विकयगाढदिण्णपहारमुच्छित - रुलंत विन्भलविलावकलुणे हयजोह - भमंत-तुरंग - उद्दाममत्तकु जर परिसंकियजणfrografच्छण्णधय- भग्गरहवरण सिरकरिकलेवराकिरण पतित पहरण - विकिष्णाभरण - भूमिभागे णच्चंतक बंधपउरभयंकर - वायस परिलेंत - गिद्धमंडल भमंतच्छायंधकार- गंभीरे । वसुवसुहविकंपियव्वपच्चक्खपिउवणं परमरुद्दबीहणगं दुप्पवेसतरगं अहिवयंति संगामसंकडं परधणं महंता । ६५ - ढीला होने के कारण चंचल एवं उन्नत उत्तम मुकुटों, तिरीटों-तीन शिखरों वाले मुकुटों - ताजों, कुण्डलों तथा नक्षत्र नामक आभूषणों की उस युद्ध में जगमगाहट होती है । स्पष्ट दिखाई देने वाली पताकाओं, ऊपर फहराती हुई ध्वजाओं, विजय को सूचित करने वाली वैजयन्ती पताकाओं तथा चंचल - हिलते डुलते चामरों और छत्रों के कारण होने वाले अन्धकार के कारण वह गंभीर प्रतीत होता है। अश्वों की हिनहिनाहट से हाथियों की चिंघाड़ से, रथों की घनघनाहट से, पैदल सैनिकों की हर-हराहट से, तालियों की गड़गड़ाहट से, सिंहनाद की ध्वनियों से, सीटी बजाने की सी आवाजों से, जोर-जोर की चिल्लाहट से जोर की किलकारियों से और एक साथ उत्पन्न होने वाली हजारों कंठों की ध्वनि से वहाँ भयंकर गर्जनाएँ होती हैं । उसमें एक साथ हँसने, रोने और कराहने के कारण कलकल ध्वनि होती रहती है । मुँह फुलाकर आँसू बहाते हुए बोलने के कारण वह रौद्र होता है । उस युद्ध में भयानक दांतों से होठों को जोर से काटने वाले योद्धानों के हाथ अचूक प्रहार करने के लिए उद्यत तत्पर रहते हैं। क्रोध की ( तीव्रता के कारण ) योद्धाओं के नेत्र रक्तवर्ण और तरेरते हुए होते हैं । वैरमय दृष्टि के कारण क्रोधपरिपूर्ण चेष्टात्रों से उनकी भौंहें तनी रहती हैं और इस कारण उनके ललाट पर तीन सल पड़े हुए होते हैं । उस युद्ध में, मार-काट करते हुए हजारों योद्धाओं के पराक्रम को देख कर सैनिकों के पौरुष पराक्रम की वृद्धि हो जाती है । हिनहिनाते हुए अश्वों और रथों द्वारा इधर-उधर भागते हुए युद्धवीरों - समरभटों तथा शस्त्र चलाने में कुशल और सधे हुए हाथों वाले सैनिक हर्ष-विभोर होकर, दोनों भुजाएँ ऊपर उठाकर, खिलखिलाकर - ठहाका मार कर हँस रहे होते हैं । किलकारियाँ मारते हैं । चमकती हुई ढालें एवं कवच धारण किए हुए, मदोन्मत्त हाथियों पर प्रारूढ प्रस्थान करते हुए योद्धा, शत्रुयोद्धाओं के साथ परस्पर जूझते हैं तथा युद्धकला में कुशलता के कारण अहंकारी योद्धा अपनी-अपनी तलवारें म्यानों में से निकाल कर, फुर्ती के साथ रोषपूर्वक परस्पर - एक दूसरे पर प्रहार करते हैं। हाथियों की सूडें काट रहे होते हैं, जिससे उनके भी हाथ कट जाते हैं । ऐसे भयावह युद्ध में मुद्गर आदि द्वारा मारे गए, काटे गए या फाड़े गए हाथी आदि पशु और मनुष्यों के युद्धभूमि में बहते हुए रुधिर के कीचड़ से मार्ग लथपथ हो रहे होते हैं । कूख के फट जाने से भूमि पर बिखरी हुई एवं बाहर निकलती हुई प्रांतों से रक्त प्रवाहित होता रहता है । तथा तड़फड़ाते हुए, विकल, मर्माहत, बुरी तरह से कटे हुए, प्रगाढ प्रहार से बेहोश हुए,
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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