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[प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अ. ३ अतएव ये नाम महत्त्वपूर्ण हैं और जो अदत्तादान से बचना चाहते हैं, उन्हें इन नामों के अर्थ पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए और उससे अपने-आपको बचाना चाहिए।
___शास्त्रकार ने सूत्र के अन्त में यह स्पष्ट निर्देश किया है कि अदात्तादान के यह तीस ही नाम हैं, ऐसा नहीं समझना चाहिए। ये नाम उपलक्षण हैं। इनके अनुरूप अन्य अनेक नाम भी हो सकते हैं । अन्य आगमों से अनेक प्रकार के स्तेनों-चोरों का उल्लेख मिलता है । यथा
तवतेणे वयतेणे रूवतेणे य जे नरे।
आयारभावतेणे य, कुव्वइ देव किविसं ॥ -दशवैकालिक, ५-४६ अर्थात् जो साधु तपःस्तेन, व्रतस्तेन, रूपस्तेन, अथवा आचारभाव का स्तेन-चोर होता है, वह तप और व्रत के प्रभाव से यदि देवगति पाता तो वहाँ भी वह किल्विष देव होता है-निम्न कोटि-हीन जाति-अछूत–सरीखा होता है।
इसी शास्त्र में आगे कहा गया है कि उसे यह पता नहीं होता कि किस प्रकार का दुराचरण करने के कारण उसे किल्विष देव के रूप में उत्पन्न होना पड़ा है ! वह उस हीन देवपर्याय से जब विलग होता है तो उसे गं गे बकरा जैसे पर्याय में जन्म लेना पड़ता है और फिर नरक तथा तिर्यंच योनि के दुःखों का पात्र बनना पड़ता है ।
चौर्यकर्म के विविध प्रकार
६२–ते पुण करेंति चोरियं तक्करा परदव्वहरा छेया, कयकरणलद्ध-लक्खा साहसिया लहुस्सगा अइमहिच्छलोभगत्था दद्दरप्रोवीलका य गेहिया अहिमरा अणभंजगा भग्गसंधिया रायदुट्ठकारी य विसयणिच्छूढ-लोकबज्झा उद्दोहग-गामघायग-पुरघायग पंथघायग-पालीवग-तित्थभेया लहुहत्थसंपउत्ता जूइकरा खंडरक्ख-त्थीचोर-पुरिसचोर-संधिच्छेया य, गंथीभेयग-परधण-हरण लोमावहारा प्रक्खेवी हडकारगा णिम्मद्दगगूढचोरग-गोचोरग-अस्सचोरग-दासीचोरा य एकचोरा प्रोकड्ढग-संपदायगउच्छिपग-सत्थघायग-बिलचोरीकारगा' य णिग्गाहविप्पलुपगा बहुबिहतेणिक्कहरणबुद्धी एए अण्णे य एवमाई परस्स दव्वाहि जे अविरया।
६२-उस (पूर्वोक्त) चोरो को वे चोर-लोग करते हैं जो परकीय द्रव्य को हरण करने वाले हैं, हरण करने में कुशल हैं, अनेकों बार चोरी कर चुके हैं और अवसर को जानने वाले हैं, साहसी हैं—परिणाम की अवगणना करके भी चोरी करने में प्रवृत्त हो जाते हैं, जो तुच्छ हृदय वाले, अत्यन्त महती इच्छा-लालसा वाले एवं लोभ से ग्रस्त हैं, जो वचनों के आडम्बर से अपनी असलियत को छिपाने वाले हैं या दूसरों को लज्जित करने वाले हैं, जो दूसरों के धनादि में गृद्ध-पासक्त हैं, जो सामने से सीधा प्रहार करने वाले हैं सामने आए हुए को मारने वाले हैं, जो लिए हुए ऋण को नहीं चुकाने वाले हैं, जो की हुई सन्धि अथवा प्रतिज्ञा या वायदे को भंग करने वाले हैं, जो राजकोष आदि को लूट कर या अन्य प्रकार से राजा-राज्यशासन का अनिष्ट करने वाले हैं, देशनिर्वासन
१. बिल कोली कारगा'-पाठ भेद ।