________________
२४]
[प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अ.३
अदत्तादान के तीस नाम
६१-तस्स य णामाणि गोण्णाणि होति तीसं, तं जहा-१ चोरिक्कं २ परहडं ३ प्रदत्तं ४ कूरिकडं ५ परलाभो ६ असंजमो ७ परधणम्मि गेही ८ लोलिक्कं ९ तक्करत्तणं त्ति य १० अवहारो ११ हत्थलहुत्तणं १२ पावकम्मकरणं १३ तेणिक्कं १४ हरणविप्पणासो १५ प्रादियणा १६ लुपणा धणाणं १७ अप्पच्चनो १८ अवीलो १९ अक्खेवो २० खेवो २१ विक्खेवो २२ कूडया २३ कुलमसी य २४ कंखा २५ लालप्पणपत्थणा य २६ पाससणाय वसणं २७ इच्छामुच्छा य २८ तण्हागेही २९ णियडिकम्मं ३० अप्परच्छंति वि य । तस्स एयाणि एवमाईणि णामधेज्जाणि होति तीसं अदिण्णादाणस्स पावकलिकलुस-कम्मबहुलस्स अणेगाई। ६१-पूर्वोक्त स्वरूप वाले अदत्तादान के गुणनिष्पन्न---यथार्थ तीस नाम हैं । वे इस प्रकार हैं
१. चोरिक्क-चौरिक्य-परकीय वस्तु चुरा लेना। २. परहडं-परहृत-दूसरे से हरण कर लेना। ३. अदत्तं-प्रदत्त स्वामी के द्वारा दिए विना लेना। ४. कूरिकडं-क्रूरिकृतम्-क्रूर लोगों द्वारा किया जाने वाला कर्म । ५. परलाभ-दूसरे के श्रम से उपाजित वस्तु आदि लेना। ६. असंजम-चोरी करने से असंयम होता है-संयम का विनाश हो जाता है, अतः यह
असंयम है। ७. परधणंमि गेही-परधने गृद्धि-दूसरे के धन में आसक्ति-लोभ-लालच होने पर चोरी
की जाती है, अतएव इसे परधनगृद्धि कहा है। न. लोलिक्क-लौल्य-परकीय वस्त संबंधी लोलपता। ९. तक्करत्तण-तस्करत्व-तस्कर-चोर का काम। १०. अवहार-अपहार–स्वामी इच्छा विना लेना। ११. हत्थलहुत्तण-हस्तलघुत्व-चोरी करने के कारण जिसका हाथ कुत्सित है उसका कर्म
अथवा हाथ की चालाकी। १२. पावकम्मकरण-पापकर्मकरण-चोरी पाप कर्म है, उसे करना पापकर्म का आचरण
करना है। १३. तेणिक्क-स्तेनिका-चोर-स्तेन का कार्य । १४. हरणविप्पणास-हरणविप्रणाश-परायी वस्तु को हरण करके उसे नष्ट करना। १५. आदियणा–प्रादान–परधन को ले लेना। १६. धणाणं लुपना-धनलुम्पता-दूसरे के धन को लुप्त करना। १७. अप्पच्च-अप्रत्यय-अविश्वास का कारण । १८. प्रोवील-अवपीड-दूसरे को पीडा उपजाना, जिसकी चोरी की जाती है, उसे पीडा
अवश्य होती है।