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## Third Class
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Seeing this, the Lord granted permission. The blessed Anāgāra, according to his vow, accepted the austerity.
He is called 'Ujjhit-Dharmic', who eats food that is particularly unwanted. The commentary states, "Ujjhiy-Dhammiyanti, Ujjhitam - Parityaagaha sa eva Dharmaha - Paryayo yasyaastiti Ujjhitadharmaha", meaning that food which is completely worthy of being abandoned or thrown away is called 'Ujjhit-Dharma'. On the day of Ayambila, the blessed Anāgāra used to eat such food.
7 Therefore, the blessed Anāgāra, on the first day of the sixth-month fast, performed the first watch of study. Just as Gautama asked the Lord, so too did the blessed Anāgāra ask the Lord, until [in the second Pौरिसी he meditated, in the third Pौरिसी he was free from bodily haste, mental restlessness, anxiety and curiosity,
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Anuttaropavaiya Class 3, Sutra 6.
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तृतीय वर्ग
२७
देख कर श्री भगवान् ने अनुमति दे दी। धन्य अनगार ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तप अंगीकार कर लिया।
'उज्झित-धर्मिक' उसे कहते हैं, जिस अन्न को विशेषतया कोई नहीं चाहता हो। टीका में कहा है"उज्झिय-धम्मियं ति, उज्झितं—परित्यागः स एव धर्मः -पर्यायो यस्यास्तीति उज्झितधर्मः" अर्थात् जो अन्न सर्वथा त्याग कर देने योग्य या फेंक देने के योग्य हो, वह 'उज्झित-धर्म' होता है। आयंबिल के दिन धन्य अनगार ऐसा ही आहार किया करते थे।
७ तए णं से धण्णे अणगारे पढमछट्ठखमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ। जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ, जाव [बीयाए पोरिसीए झाणं झियायइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता भायणाई वत्थाई पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता भायणाई पमजइ, पमज्जित्ता भायणाई उग्गहेइ उग्गहित्ता, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए छट्ठक्खमणपारणगंसि कायंदीए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए।
अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं ।
तए णं धण्णे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ सहसंबवणाओ उजाणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहमाणे सोहमाणे ] जेणेव कायंदी णगरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कायंदीए णयरीए उच्च० जाव [नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुयाणस्स भिक्खायरियं] अडमाणे आयंबिलं, नो अणायंबिलं जाव' नावकंखंति।
तए णं से धण्णे अणगारे ताए अब्भुजयाए पययाए पयत्ताए पग्गहियाए एसणाए एसमाणे जइ भत्तं लभइ, तो पाणं न लभइ, अह पाणं लभइ तो भत्तं न लभइ।
तए णं से धण्णे अणगारे अदीणे अविमणे अकलुसे अविसादी अपरितंतजोगी जयणघडणजोगचरित्ते अहापजत्तं समुदाणं पडिगाहेइ, पडिगाहित्ता कायंदीओ नयरीओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जहा गोयमे जाव [जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामन्ते गमणागमणाए पडिक्कमइ एसणमणेसणं आलोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं] पडिदंसेइ।
तए णं से धण्णे अणगारे समणेणं भगवया अब्भणुण्णए समाणे अमुच्छिए जाव[अगिद्धे अगढिए] अणझोववण्णे बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं आहारं आहारेइ, आहारित्ता संजमेण तवसा जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
अनन्तर धन्य अनगार ने प्रथम षष्ठ तप के पारणा के दिन प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया। जिस प्रकार गौतम ने भगवान् से पूछा, उसी प्रकार पारणा के लिए धन्य अनगार ने भी भगवान् से पूछा, यावत् [दूसरी पौरिसी में ध्यान ध्याया, तीसरी पौरिसी में शारीरिक शीघ्रता रहित, मानसिक चपलता रहित, आकुलता और उत्सुकता रहित होकर
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अणुत्तरोववाइय वर्ग ३, सूत्र ६.