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## First Study: Gathapati Ananda
**[51. Excesses of the Upbhog-Paribhog-Parimaan Vrat]**
**51.** There are two types of Upbhog-Paribhog, as defined: one with respect to food, and the other with respect to actions.
With respect to food, a Shramanopasak should know and avoid five excesses of the Upbhog-Paribhog Vrat. These are:
* Sachitta Ahar (consuming living beings)
* Sachitta-Pratibandha Ahar (consuming food that has been in contact with living beings)
* Appakva-Oshadhi-Bhakhanata (consuming unripe herbs)
* Duspakva-Oshadhi-Bhakhanata (consuming improperly cooked herbs)
* Tuchchha-Oshadhi-Bhakhanata (consuming inferior herbs)
With respect to actions, a Shramanopasak should know and avoid fifteen Karmaadanas. These are:
* Ingalakarma (working with fire)
* Vanakarma (working in the forest)
* Sadikarma (working with carts)
* Bhadikarma (working in a furnace)
* Phodikarma (working with explosives)
* Dantavaanijya (trading in teeth)
* Lakshavaanijya (trading in lac)
* Rasavaanijya (trading in juices)
* Vishavaanijya (trading in poisons)
* Keshavaanijya (trading in hair)
* Jantapilana Karma (torturing animals)
* Nilanchhana Karma (marking animals)
* Davagnidavan (lighting fires)
* Sar-Hrad-Tadaga-Shoshan (drying up lakes and ponds)
* Asati-Jan-Poshan (feeding non-believers)
**Explanation:**
Sachitta Ahar: Sachitta means "with life" or "living." Uncooked or unboiled vegetables, plants, fruits, unprocessed grains, water, etc., are all Sachitta substances. Here, the context is about consuming them.
It should be understood that a Shramanopasak or Shravak does not completely abstain from Sachitta substances. It is not mandatory for them to do so. They abstain from Sachitta substances according to their capacity, setting a limit. They make exceptions for certain things that they can consume. If, due to carelessness, they violate the limits they have set, it falls under the excess of Sachitta Ahar. This is about carelessly violating the rules regarding Sachitta substances. If they knowingly violate the limits of Sachitta-tyaga, it becomes an act of misconduct, and the Vrat is broken.
Sachitta-Pratibandha Ahar: Consuming food that has been in contact with a Sachitta substance is called Sachitta-Pratibandha Ahar. For example, one can take a large grape or date. Each of them has two parts...
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प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द]
[५१ उपभोग-परिभोग-परिमाण-व्रत के अतिचार
५१. तयाणंतरं च णं उवभोगपरिभोगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--भोयणओ य, कम्मओ य। तत्थ णं भोयणओ समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा--सचित्ताहारे, सचित्तपडि वद्धाहारे, अप्पउलिओसहि भक्खणया, दुप्पउलिओसहिभक्खणया, तुच्छोसहिभक्खणया। कम्मओ णं समणोवासएणं पण्णरस कम्मादाणाइं जाणियव्वाइं, न समायरिव्वाइं, तं जहा-इंगालकम्मे, वणकम्मे, साडीकम्मे, भाडीकम्मे, फोडीकम्मे, दंतवाणिज्जे लक्खावाणिज्जे, रसवाणिजे, विसवाणिज्जे, केसवाणिजे, जंतपीलणकम्मे, निलंछणकम्मे, दवग्गिदावणया, सरदहतलायसोसणया, असईजणपोसणया।
उपभोग-परिभोग दो प्रकार का कहा गया है--भोजन की अपेक्षा से तथा कर्म की अपेक्षा से। भोजन की अपेक्षा से श्रमणोपासक को उपभोग-परिभोग व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए। वे इस प्रकार है- सचित्त आहार, सचित्तप्रतिबद्ध आहार, अपक्वओषधि-भक्षणता, दुष्पक्व-ओषधि-भक्षणता तथा तुच्छ ओषधि-भक्षणता।
· कर्म की अपेक्षा से श्रमणोपासक को पन्द्रह कर्मादानों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए। वे इस प्रकार है--
अंगारकर्म, वनकर्म, शकटकर्म, भाटीकर्म, स्फोटनकर्म, दन्तवाणिज्य, लाक्षावाणिज्य, रसवाणिज्य, विषवाणिज्य, केशवाणिज्य, यन्त्रपीडनकर्म, निन्छनकर्म, दवाग्निदापन, सर-ह्रद-तडागशोषण तथा असती-जन-पोषण। विवेचन
सचित्त आहार--सचित्त का अर्थ सप्राण या सजीव है। बिना पकाई या बिना उबाली हुई शाक-सब्जी. वनस्पति. फल. असंस्कारित अन्न, जल आदि सचित्त पदार्थों में है। यहाँ उनके खाने का प्रसंग है।
ज्ञातव्य है कि श्रमणोपासक या श्रावक सचित वस्तुओं का सर्वथा त्यागी नही होता। ऐसा करना उसके लिए अनिवार्य भी नहीं है । वह अपनी क्षमता के अनुसार सचित वस्तुओं का त्याग करता है, एक सीमा करता है। कुछ का अपवाद रखता है, जिनका वह सेवन कर सकता है । जो मर्यादा उसने की है, असावधानी से यदि वह उसका उल्लंघन करता है तो यह सचित्त-आहार अतिचार में आ जाता है। यह असावधानी से सचित सम्बन्धी नियम का उल्लंघन करने की बात है, यदि जान-बुझ कर वह सचित्त-त्याग सम्बन्धी मर्यादा का खंडन करता है तो यह अनाचार हो जाता है, व्रत टूट जाता है।
सचित्त-प्रतिबद्ध आहार--सचित्त वस्तु के साथ सटी हुई या लगी हुई वस्तु को खाना सचित्तप्रतिबद्ध आहार है, उदाहरणार्थ बड़ी दाख या खजूर को लिया जा सकता है। उनमें से प्रत्येक के दो भाग