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English translation with Jain terms preserved:
First Study: Gāthāpati Ānanda
Transgressions of the Vow of Non-Stealing (Astēya Vrata)
47. Thereafter, one should know and not practice the five transgressions of the vow of abstinence from taking what is not given (Sthūlagasya Adinnādānavēramaṇa). They are: Stēnāhṛta, Taskara-prayōga, Virūddha-rājyātikrama, Kūṭatulā-kūṭamāna, and Tat-pratirupaka-vyavahāra.
Explanation:
Stēnāhṛta - Acquiring, purchasing, or possessing an object that has been stolen.
Taskara-prayōga - Utilizing the services of thieves in one's business activities.
Virūddha-rājyātikrama - Transgressing the prescribed limits of entry into other kingdoms, entering other states.
Kūṭatulā-kūṭamāna - Fraudulent use of weights and measures, such as giving less in sale and taking more in purchase.
Tat-pratirupaka-vyavahāra - Unethical and dishonest practices in trade, such as mixing inferior goods with superior ones or passing off imitations as genuine.
Transgressions of the Vow of Contentment with One's Own Wife (Svadāra-santōṣa Vrata)
48. Thereafter, one should know and not practice the five transgressions of the vow of contentment with one's own wife. They are: Itvarika-parigṛhītāgamana, Aparigṛhītāgamana, Ananga-krīḍā, Para-vivāha-karaṇa, and Kāma-bhōga-tīvrābhilāṣa.
Explanation:
Itvarika-parigṛhītāgamana - Visiting a woman who is temporarily under one's protection.
Aparigṛhītāgamana - Visiting an unprotected woman.
Ananga-krīḍā - Engaging in sensual play.
Para-vivāha-karaṇa - Performing the marriage of another person.
Kāma-bhōga-tīvrābhilāṣa - Intense desire for sensual pleasures.
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प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द ]
अस्तेय व्रत के अतिचार
४७. तयाणंतरं च णं थूलगस्स अदिण्णादाणवेरमणस्स पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा। तं जहा - तेणाहडे, तक्करप्पओगे, विरूद्ध - रज्जाइक्कमे, कूडतुल्लकूडमाणे, तप्पडिरूवगववहारे ।
[ ४७
तदन्तर स्थूल अदत्तादानविरमण - व्रत के पाँच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए। वे इस प्रकार है-
स्तेनाहृत, तस्करप्रयोग, विरूद्धराज्यातिक्रम, कूटतुलाकूटमान, तत्प्रतिरूपकव्यवहार ।
विवेचन
स्तेनाहृत- स्तेन का अर्थ चोर होता है, आहृत का अर्थ उस द्वारा चुरा कर लाई हुई वस्तु । ऐसी वस्तु को लेना, खरीदना, रखना ।
तस्करप्रयोग अपने व्यावसायिक कार्यों में चोरों का उपयोग करना ।
विरूद्धराज्यातिक्रम-विरोधवश अपने देश से इतर देशों के शासकों द्वारा प्रवेश निषेध की निर्धारित सीमा लांघना, दूसरे राज्यों में प्रवेश करना। इसका एक दूसरा अर्थ भी किया जाता है, जिसके अनुसार राज्य - विरूद्ध कार्य करना इसके अन्तर्गत आता है ।
कूटतुलाकूटमान -- तोलने और मापने में झूठ का प्रयोग अर्थात् व्यापार देने में कम तोलना या मापना, लेने में ज्यादा तोलना या मापना ।
तत्प्रतिरूपकव्यवहार-- इसका शब्दार्थ कूट- तुला - कूटमान जैसा व्यवहार है, अर्थात् व्यापार में अनैतिकता व असत्याचरण करना--जैसे अच्छी वस्तु में घटिया वस्तु मिला देना, नकली को असली बतलाना आदि ।
स्वदारसन्तोष व्रत के अतिचार
४८. तयाणंतरं च णं सदार-संतोसिए पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा । तं जहा- इत्तरियपरिग्गहियागमणे, अपरिग्गहियागमणे, अणंगकीडा, परविवाहकरणे, कामभोगतिव्वाभिलासे ।
तदनन्तर स्वदारसंतोष व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए। वे अतिचार इस प्रकार हैं
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इत्वरिक परिगृहीतागमन, अपरिगृहीतागमन अनंगक्रीडा, पर विवाह करण तथा कामभोगतीव्राभिलाष ।
विवेचन
इत्वरिकपरिगृहीतागमन-- इत्वरिक का अर्थ अस्थायी, अल्पकालिक या चला जाने वाला है ।