________________
३४]
[ज्ञाताधर्मकथा
और आसन पर बैठने के लिए निमंत्रित करते थे, किन्तु तात! आज आप मुझे आदर नहीं दे रहे हैं, यावत् आसन पर बैठने के लिए निमंत्रित नहीं कर रहे हैं और मन का संकल्प नष्ट होने के कारण कुछ चिन्ता कर रहे हैं तो इसका कोई कारण होना चाहिए। तो हे तात! आप इस कारण को छिपाए विना, इष्टप्राप्ति में शंका रक्खे विना, अपलाप किये विना, दबाये विना, जैसा का तैसा, सत्य एवं संदेहरहित कहिए। तत्पश्चात् मैं उस कारण का पार पाने का प्रयत्न करूंगा, अर्थात् आपकी चिन्ता के कारण को दूर करूंगा।
६२-तए सेणिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे अभयं कुमारं एवं वयासीएवं खलु पुत्ता! तव चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए तस्स गब्भस्स दोसे मासेसुअइक्कंतेसु तइयमासे वट्टमाणे दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे दोहले पाउन्भवित्था-धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ तहेव निरवसेसं भाणियव्वंजाव विणिंति।तएणं अहं पुत्ता! धारिणीए देवीए तस्स अकालदोहलस्स बहूहिं आएहि य उवाएहिं जाव उप्पत्तिं अविंदमाणे ओहयणसंकप्पे जाव झियायामि, तुमं आगयं पि न याणामि। तं एतेणं कारणेणं अहं पुत्ता! ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि।
अभयकुमार के इस प्रकार कहने पर श्रेणिक राजा ने अभयकुमार से इस प्रकार कहा-पुत्र! तुम्हारी छोटी माता धारिणी देवी की गर्भस्थिति हुए दो मास बीत गए और तीसरा मास चल रहा है। उसमें दोहद-काल के समय उसे इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ है-वे माताएँ धन्य हैं, इत्यादि सब पहले की भांति ही कह लेना चाहिए, यावत् जो अपने दोहद को पूर्ण करती हैं। तब हे पुत्र! मैं धारिणी देवी के उस अकाल-दोहद के आयों (लाभ), उपायों एवं उपपत्ति को अर्थात् उसकी पूर्ति के उपायों को नहीं समझ पाया हूँ। इससे मेरे मन का संकल्प नष्ट हो गया है और मैं चिन्तायुक्त हो रहा हूँ। इसी से मुझे तुम्हारा आना भी नहीं जान पड़ा। अतएव पुत्र! मैं इसी कारण नष्ट हुए मन संकल्प वाला होकर चिन्ता कर रहा हूँ। अभय का आश्वासन
६३–तए णं से अभयकुमारे सेणियस्स रन्नो अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्ठ जाव' हियए सेणियं रायं एवं वयासी-'मा णं तुब्भे ताओ! ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह। अहं णं तहा करिस्सामि, जहा णं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवस्स अकालदोहलस्स मणेरहसंपत्ती भविस्सइ' त्ति कट्ट सेणियं रायं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं जाव [पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं वग्गूहिं] समासासेइ।
__ तत्पश्चात् वह अभयकुमार, श्रेणिक राजा से यह अर्थ सनकर और समझ कर हृष्ट-तष्ट और आनन्दितहृदय हुआ। उसने श्रेणिक राजा से इस भाँति कहा-हे तात! आप भग्न-मनोरथ होकर चिन्ता न करें। मैं वैसा (कोई उपाय) करूंगा, जिससे मेरी छोटी माता धारिणी देवी के इस अकाल-दोहद के मनोरथ की पूर्ति होगी। इस प्रकार कह (अभयकुमार ने) इष्ट, कांत [यावत् प्रिय, मनोज्ञ एवं मनोहर वचनों से] श्रेणिक राजा को सान्त्वना दी।
___६४-तए णं सेणिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे जाव अभयकुमारं सक्कारेति संमाणेति, सक्कारित्ता संमाणित्ता पडिविसजेति।
१. प्र. अ. सूत्र १८