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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात] [११. जम्बूस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं-भगवन्! यदि यावत् सिद्धिस्थान को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने छठे अंग के दो श्रुतस्कन्ध प्ररूपित किये हैं-ज्ञात और धर्मकथा, तो भगवन् ! ज्ञात नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध के यावत् सिद्धिस्थान को प्राप्त श्रमण भगवान् ने कितने अध्ययन कहे हैं ? ११–एवं खलु जंबू! समणेणं जाव' संपत्तेणंणायाणं एगूणवीसं-अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा उक्खित्तणाए, संघाडे, अंडे कुम्मे य, सेलगे। तुंबे य, रोहिणी, मल्ली, माइंदी, चंदिमाइ य॥१॥ दावद्दवे, उदगणाए, मंडुक्के, तेयली, वि य। णंदिफले, अमरकंका, आइण्णे, सुसमाइ य॥ २॥ अवरे य पुंडरीए, णामा एगूणवीसश्मे। हे जम्बू! यावत् सिद्धिस्थान को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने ज्ञात नामक श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्ययन कहे हैं। वे इस प्रकार हैं (१) उत्क्षिप्तज्ञात (२) संघाट (३) अंडक (४) कूर्म (५) शैलक (६) रोहिणी (७) मल्ली (८).माकंदी (९) चन्द्र (१०) दावद्रववृक्ष (११) तुम्ब (१२) उदक (१३) मंडूक (१४) तेतलीपुत्र (१५) नन्दीफल (१६) अमरकंका (द्रौपदी) (१७) आकीर्ण (१८) सुषमा (१९) पुण्डरीक-कुण्डरीक, यह उन्नीस ज्ञात अध्ययनों के नाम हैं। १२-जइ णं भंते! समणेणंजाव' संपत्तेणं णायाणं एगूणवीसं अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा-उक्खित्तणाए जाव पुंडरीए य, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते? भगवन् ! यदि श्रमण यावत् सिद्धिस्थान को प्राप्त भगवान् महावीर ने ज्ञात-श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्ययन कहे हैं, यथा-उत्क्षिप्तज्ञात यावत् पुण्डरीक, तो भगवन् ! प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है? १३–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्डभरहे, रायगिहे णामं णयरे होत्था, वण्णओ। गुणसीले चेइए वण्णओ। __ हे जम्बू! उस काल और उस समय में, इसी जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में, दक्षिणार्ध भरत में राजगृह नामक नगर था। उसका वर्णन उववाईसूत्र में वर्णित चम्पा नगरी के समान जान लेना चाहिए। राजगृह के ईशान कोण में गुणशील नामक उद्यान था। उसका वर्णन भी औपपातिकसूत्र से जान लेना चाहिए। __१४-तत्थ णं रायगिहे णयरे सेणिए णामं राया होत्था महया हिमवंत० वण्णओं। तस्स णं सेणियस्स रण्णो णंदा णामं देवी होत्था सुकुमालपाणिपाया वण्णओ । उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था। वह महाहिमवंत पर्वत के समान था, इत्यादि वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार समझ लेना चाहिए। उस श्रेणिक राजा की नन्दा नामक देवी थी। वह सुकुमार हाथों-पैरों वाली थी, इत्यादि वर्णन को औपपातिक सूत्र से जान लेना चाहिए। १. सूत्र ८, २. औप. सूत्र १, ३. औप. सूत्र २, ४. औप. सूत्र ६, ५. औप. सूत्र ७
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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