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________________ १२] [ ज्ञाताधर्मकथा अभयकुमार १५ - तस्स णं सेणियस्स पुत्ते णंदादेवीए अत्तए अभए णामं कुमारे होत्था; अहीण जाव [ अहीण-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरे लक्खण- वंजण- गुणोववेर माणुम्माण- पमाण- पडिपुण्णसुजाय - सव्वंग - सुंदरंगे, ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे, साम-दंड-भेय-उवप्पयाण-णीतिसुप्पउत्तणय-विहणू, ईहापोह - मग्गण - गवेसण - अत्थसत्थमई, विसारए, उप्पत्तियाए, वेणइयाए, कम्मयाए, पारिणामियाए चउव्विहाए बुद्धीए उपवेए, सेणियस्स रण्णो बहुसु कज्जेसु य, कुडुंबे य, मंतेसु य, गुज्झेसु य, रहस्सेसु य, णिच्छएसु य, आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे, मेढी, पमाणं, आहारे, आलंबभूए, पमाणभूए, आहारभूए, चक्खुभूए, सव्वकज्जेसु य, सव्वभूमियासु य लद्धपच्चए, विइण्णवियारे, रज्जधुरचिंतए यावि होत्था ] सेणियस्स रण्णो रज्जं च, रटुं य, कोसं च, कोट्ठागारं च, बलं च, वाहणं च पुरं च, अंतेउरं च, सयमेव समुपेक्खमाणे- समुपेक्खमाणे विहरइ । श्रेणिक राजा का पुत्र और नन्दा देवी का आत्मज अभय नामक कुमार था। वह शुभ लक्षणों से युक्त तथा स्वरूप से परिपूर्ण पांचों इंद्रियों से युक्त शरीरवाला था । यावत् (स्वस्तिक चक्र) आदि लक्षणों एवं तिलक आदि व्यंजनों के गुणों से युक्त था। मान- उन्मान और प्रमाण से परिपूर्ण तथा सुन्दर सर्वांगों से सुशोभित था। चन्द्रिका के समान सौम्य तथा कमनीय था। देखने वालों को उसका रूप प्रियकर लगता था । वह सुरूप था। साम, दंड, भेद एवं उपप्रदान नीति में निष्णात तथा व्यापार नीति की विधि का ज्ञाता था । ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा तथा अर्थशास्त्र में कुशल था। औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी तथा पारिणामिकी, इन चार प्रकार की बुद्धियों से युक्त था । वह श्रेणिक राजा के लिये बहुत से कार्यों में, कौटुम्बिक कार्यों में, मंत्रणा में, गुह्य कार्यों में, रहस्यमय मामलों में, निश्चय करने में, एक बार और बार- बार पूछने योग्य था, अर्थात् श्रेणिक राजा इन सब विषयों से अभयकुमार की सलाह लिया करता था। वह सब के लिए मेढ़ी ( खलिहान में गाड़ा हुआ स्तंभ, जिसके चारों ओर घूम-घूम कर बैल धान्य को कुचलते हैं) के समान था, पृथ्वी के समान आधार था, रस्सी के समान आलम्बन रूप था, प्रमाणभूत था, आधारभूत था, चक्षुभूत था, सब और सब स्थानों में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला था । सब को विचार देने वाला था तथा राज्य की धुरा को धारण करने वाला था । वह स्वयं ही राज्य (शासन) राष्ट्र (देश), कोश, कोठार (अन्नभंडार), बल (सेना) और वाहन (सवारी के योग्य हाथी अश्व आदि), पुर (नगर) और अन्त: पुर की देखभाल करता रहता था । विवेचन - पानी का एक कुंड लबालब भरा हुआ हो और उसमें पुरुष को बिठाने पर एक द्रोण (प्राचीन नाप) पानी बाहर निकले तो वह पुरुष मान-संगत कहलाता है। तराजू पर तोलने पर यदि अर्ध भार प्रमाण तुले तो वह उन्माद - संगत कहलाता है । अपने अंगुल से एक सौ आठ अंगुल ऊँचा हो तो वह प्रमाणसंगत कहलाता है। अभयकुमार जहाँ शरीरसौष्ठव से सम्पन्न था वहीं अतिशय बुद्धिशाली भी था। सूत्र में उसे चार प्रकार की बुद्धियों से युक्त बतलाया गया है। चार प्रकार की बुद्धियों का स्वरूप इस प्रकार है - (१) औत्पत्तिकी बुद्धि - सहसा उत्पन्न होने वाली सूझ-बूझ । पूर्व में कभी नहीं देखे, सुने अथवा जाने किसी विषय को एकदम समझ लेना, कोई विषम समस्या उपस्थित होने पर तत्क्षण
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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