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परिशिष्ट १]
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अष्टम अध्ययन १-उग्ग-तव-संजमवओ पगिट्ठफलसाहगस्स वि जियस्स।
धम्मविसएवि सुहमावि, होइ माया अणत्थाय॥ २-जह मल्लिस्स महाबलभवम्मि तित्थगरनामबंधे वि।
तवविसय-थेवमाया जाया जुवइत्तहेउत्ति॥ १-उग्रतप तथा संयमवान् एवं उत्कृष्ट फल के साधक जीव द्वारा की गई सूक्ष्म और धर्मविषयक माया भी अनर्थ का कारण होती है, यथा
२-मल्ली कुमारी को महाबल के भव में तीर्थंकरनामकर्म का बंध होने पर भी तप के विषय में की गई थोड़ी-सी माया भी युवतीत्व (स्त्रीत्व) का कारण बन गई।
नौवां अध्ययन १-जह रयणदीवदेवी, तह एत्थं अविरई महापावा।
जह लाहत्थी वणिया, तह सुहकामा इहं जीवा॥ २-जह तेहिं भीएहिं, दिट्ठो आघायमंडले पुरिसो।
संसारदुक्खभीया, पासंति तहेव धम्मकहं॥ ३-जह तेण तेसि कहिया, देवी दुक्खाण कारणं घोरं।
तत्तो च्चिय नित्थारो, सेलगजक्खाओ नन्नत्तो॥ ४-तह धम्मकही भव्वाणं, साहए दिट्ठ-अविरइ-सहावो।
सयलदुहहेउभूआ, विसया विरयंति जीवाणं॥ ५-सत्ताणं दुहत्ताणं सरणं चरणं जिणिंदपण्णत्तं।
आनन्दरूव-निव्वाण-साहणं तह य देसेइ॥ ६-जह तेसिं तरियव्वो, रुंदसमुद्दो तहेव संसारो।
जह तेसिं सगिहगमणं, निव्वाणगमो तहा एत्थं ॥ ७-जह सेलगपिट्ठाओ, भट्ठो देवीइ मोहियमईओ।
सावय-सहस्स-पउरंमि, सायरे पाविओ निहणं॥ ८-तह अविरईइ नडिओ, चरणचुओ दुक्ख-सावयाइण्णो।
निवडइ अपार-संसार-सायरे दारुणसरूवे॥ ९-जह देवीए अक्खोहो, पत्तो सट्ठाणं जीवियसुहाई।
तह चरणट्टिओ साहू, अक्खोहो जाइ निव्वाणं॥ १-रत्नद्वीप की देवी के स्थान पर यहाँ महापापमय अविरति समझना चाहिए। लाभ के अभिलाषी वणिकों की जगह यहाँ सुख की कामना करने वाले जीव समझना चाहिए।
२-जैसे उन्होंने (जिनरक्षित और जिनपाल नामक वणिकों ने) आघात-मंडल में एक पुरुष को