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________________ परिशिष्ट १] [५५१ अष्टम अध्ययन १-उग्ग-तव-संजमवओ पगिट्ठफलसाहगस्स वि जियस्स। धम्मविसएवि सुहमावि, होइ माया अणत्थाय॥ २-जह मल्लिस्स महाबलभवम्मि तित्थगरनामबंधे वि। तवविसय-थेवमाया जाया जुवइत्तहेउत्ति॥ १-उग्रतप तथा संयमवान् एवं उत्कृष्ट फल के साधक जीव द्वारा की गई सूक्ष्म और धर्मविषयक माया भी अनर्थ का कारण होती है, यथा २-मल्ली कुमारी को महाबल के भव में तीर्थंकरनामकर्म का बंध होने पर भी तप के विषय में की गई थोड़ी-सी माया भी युवतीत्व (स्त्रीत्व) का कारण बन गई। नौवां अध्ययन १-जह रयणदीवदेवी, तह एत्थं अविरई महापावा। जह लाहत्थी वणिया, तह सुहकामा इहं जीवा॥ २-जह तेहिं भीएहिं, दिट्ठो आघायमंडले पुरिसो। संसारदुक्खभीया, पासंति तहेव धम्मकहं॥ ३-जह तेण तेसि कहिया, देवी दुक्खाण कारणं घोरं। तत्तो च्चिय नित्थारो, सेलगजक्खाओ नन्नत्तो॥ ४-तह धम्मकही भव्वाणं, साहए दिट्ठ-अविरइ-सहावो। सयलदुहहेउभूआ, विसया विरयंति जीवाणं॥ ५-सत्ताणं दुहत्ताणं सरणं चरणं जिणिंदपण्णत्तं। आनन्दरूव-निव्वाण-साहणं तह य देसेइ॥ ६-जह तेसिं तरियव्वो, रुंदसमुद्दो तहेव संसारो। जह तेसिं सगिहगमणं, निव्वाणगमो तहा एत्थं ॥ ७-जह सेलगपिट्ठाओ, भट्ठो देवीइ मोहियमईओ। सावय-सहस्स-पउरंमि, सायरे पाविओ निहणं॥ ८-तह अविरईइ नडिओ, चरणचुओ दुक्ख-सावयाइण्णो। निवडइ अपार-संसार-सायरे दारुणसरूवे॥ ९-जह देवीए अक्खोहो, पत्तो सट्ठाणं जीवियसुहाई। तह चरणट्टिओ साहू, अक्खोहो जाइ निव्वाणं॥ १-रत्नद्वीप की देवी के स्थान पर यहाँ महापापमय अविरति समझना चाहिए। लाभ के अभिलाषी वणिकों की जगह यहाँ सुख की कामना करने वाले जीव समझना चाहिए। २-जैसे उन्होंने (जिनरक्षित और जिनपाल नामक वणिकों ने) आघात-मंडल में एक पुरुष को
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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