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________________ ५५०] [ज्ञाताधर्मकथा १४-तित्थस्स वुड्डिकारी, अक्खेवणओ कुतित्थियाईणं। विउसनर-सेविय-कमो, कमेण सिद्धिं पि पावेइ॥ १-श्रेष्ठी (धन्य सार्थवाह) के स्थान पर गुरु, ज्ञातिजनों के स्थान पर श्रमणसंघ, बहुओं के स्थान पर भव्य प्राणी और शालिकणों के स्थान पर महाव्रत समझने चाहिएँ। २-जैसे उज्झिता बहू यथार्थ नाम वाली थी और शालि के दानों को फेंक देने के कारण दास्य-कर्म करने से असंख्य दुःखों को प्राप्त हुई ३-वैसे ही जो भव्य जीव गुरु द्वारा प्रदत्त महाव्रतों को संघ के समक्ष स्वीकार करके महामोह के वशीभूत होकर त्याग देता है ४-वह इस भव में जनता के तिरस्कार का पात्र होता है और परलोक में भी दुःख से पीड़ित होकर अनेक योनियों में भ्रमण करता है। ५-जैसे यथार्थ नाम वाली भोगवती बहू शालिकणों को खा गई, वह भी विशेष प्रकार के दासीकर्म करने के कारण दुःख को ही प्राप्त हुई ६-वैसे ही जो महाव्रतों को जीविका का साधन मानकर पालता एवं उनका उसी प्रकार से उपयोग करता है, आहारादि में आसक्त होता है और ये महाव्रत मुक्ति के साधन हैं, इस भावना से रहित होता है ७-वह केवल साधुलिंगधारी यथेष्ट आहारादि प्राप्त करता है पर विद्वानों का पूजनीय नहीं होता। परलोक में भी दुःखी होता है। ८-जिस प्रकार यथार्थ नामवाली बहू रक्षिता ने शालिकणों की रक्षा की और पारिवारिक जनों में मान्य हुई। उसने भोग-सुखों को भी प्राप्त किया ९-उसी प्रकार जो जीव महाव्रतों को स्वीकार करके लेश मात्र भी प्रमोद नहीं करता हुआ उनका निरतिचार पालन करता है ___१०-वह एक मात्र आत्महित में आनन्द मानने वाला इस लोक में विद्वानों द्वारा पूजित तथा एकान्त रूप से सुखी होता है। परभव में मोक्ष भी प्राप्त करता है। ११-जैसे यथार्थ नाम वाली रोहिणी नामक पुत्रवधू शालि के रोप द्वारा उनकी वृद्धि करके समस्त धन की स्वामिनी बनी १२-उसी प्रकार जो भव्य प्राणी महाव्रतों को प्राप्त करके स्वयं उनका सम्यक् प्रकार से पालन करता है और दूसरे भी भव्य प्राणियों को उनके हित के लिए प्रदान करता है १३-वह इस भव में गौतमस्वामी के समान संघप्रधान एवं युगप्रधान पदवी को प्राप्त करता है तथा अपना और दूसरों का कल्याण करने वाला होता है। १४-वह तीर्थ का अभ्युदय करने वाला, कुतीर्थिकों का निराकरण करने वाला और विद्वानों द्वारा पूजित होकर क्रमशः सिद्धि को भी प्राप्त करता है।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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