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________________ एगुणवीसइमं अज्झयणं : पुंडरीए श्री जम्बू की जिज्ञासा १ - जइणं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठारसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, एगूणवीसइमस्स णायज्झयणस्स समणेणं महावीरेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? जम्बूस्वामी प्रश्न करते हैं - 'भगवन् ! यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने अठारहवें ज्ञातअध्ययन का यह अर्थ कहा है तो उन्नीसवें ज्ञात - अध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ कहा है ? श्री सुधर्मा द्वारा समाधान २ - एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे सीयाए महाणदीए उत्तरिल्ले कूले नीलवंतस्स दाहिणेणं उत्तरिल्लस्स सीतामुखवणसंडस्स पच्छिमेणं एगसेलगस्स वक्खारपव्वयस्स पुरच्छिमेणं एत्थं णं पुक्खलावई णामं विजय पण्णत्ते । तत्थ णं पुंडरीगिणी णामं रायहाणी पन्नत्ता - णवजोयणवित्थिन्ना दुवालसजोयणायामा जाव' पच्चक्खं देवलोयभूया पासाईया दंसणीया अभिरुवा पडिरूवा । तीसे णं पुंडरीगिणीए यरीए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए णलिणिवणे णामं उज्जाणे होत्था । वण्णओ । श्री सुधार्मास्वामी ने जम्बूस्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा - जम्बू ! उस काल और उस समय इसी जम्बूद्वीप में, पूर्व विदेह क्षेत्र में, सीता नामक महानदी के उत्तरी किनारे नीलवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, उत्तर तरफ के सीतामुख वनखण्ड के पश्चिम में और एकशैल नामक वक्षार पर्वत से पूर्व दिशा में पुष्कलावती नामक विजय कहा गया है। उस पुष्कलावती विजय में पुण्डरीकिणी नामक राजधानी है। वह नौ योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी यावत् साक्षात् देवलोक के समान है। मनोहर है, दर्शनीय है, सुन्दर रूप वाली है और दर्शकों को आनन्द प्रदान करने वाली है। उस पुण्डरीकिणी नगरी में उत्तर - पूर्वदिशा के भाग (ईशानकोण) में नलिनीवन नामक उद्यान था। उसका वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार समझ लेना चाहिए। महापद्मराज की दीक्षा : सिद्धिप्राप्ति ३–तत्थ णं पुंडरीगिणीए रायहाणीय महापउमे णामं राया होत्था । तस्स णं पउमावई देवी होत्था । तस्स णं महापउमस्स रण्णो पुत्ता पउमावईए देवीए अत्तया दुवे कुमारा होत्था, तं जहा - पुंडरीए य कंडरीए य सुकुमालपाणिपाया। पुंडरीए जुवराया | उस पुण्डरीकिणी राजधानी में महापद्म नामक राजा था । पद्मावती उसकी - देवी - पटरानी थी। १. अ. ५ सूत्र २.
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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