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________________ उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक] [५०५ महापद्म राजा के पुत्र और पद्मावती देवी के आत्मज दो कुमार थे-पुंडरीक और कंडरीक। उनके हाथ पैर (आदि) बहुत कोमल थे। उनमें पुंडरीक युवराज था। ४-तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं (धम्मघोसा थेरा पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुब्बि चरमाणा जाव जेणेव णलिणिवणे उजाणे तेणेव समोसढे)। उस काल और उस समय में स्थविर मुनि का आगमन हुआ अर्थात् धर्मघोष स्थविर पांच सौ अनगारों के साथ परिवृत होकर, अनुक्रम से चलते हुए, यावत् नलिनीवन नामक उद्यान में ठहरे। ५-महापउमेराया णिग्गए।धम्म सोच्चा पोंडरीयं रजे ठवेत्ता पव्वइए। पोंडरीए राया जाए। कंडरीए जुवराया। महापउमे अणगारे चोद्दसपुव्वाइं अहिजइ। तए णं थेरा बहिया जणवयविहारं विहरइ। तए णं से महापउमे बहूणि वासाणि जाव सिद्धे। ___ महापद्म राजा स्थविर मुनि को वन्दना करने निकला। धर्मोपदेश सुनकर उसने पुंडरीक को राज्य पर स्थापित करके दीक्षा अंगीकार कर ली। अब पुंडरीक राजा हो गया और कंडरीक युवराज हो गया। महापद्म अनगार ने चौदह पूर्वो का अध्ययन किया। स्थविर मुनि बाहर जाकर जनपदों में विहार करने लगे। मुनि महापद्म ने बहुत वर्षों तक श्रामण्यपर्याय पालकर सिद्धि प्राप्त की। ६-तए णं थेरा अन्नया कयाई पुणरवि पुंडरीगिणीए रायहाणीए णलिणिवणे उज्जाणे समोसढा।पोंडरीए राया णिग्गए।कंडरीए महाजणसई सोच्चा जहा महाब्बलो जाव पजुवासइ। थेरा धम्म परिकहेंति। पुंडरीए समणोवासए जाए जाव पडिगए। तत्पश्चात् एक बार किसी समय पुनः स्थविर पुंडरीकिणी राजधानी के नलिनीवन उद्यान में पधारे। पुंडरीक राजा उन्हें वन्दना करने के लिए निकला। कंडरीक भी महाजनों (बहुत लोगों) के मुख से स्थविर के आने की बात सुन कर (भगवतीसूत्र में वर्णित) महाबल कुमार की तरह गया। यावत् स्थविर की उपासना करने लगा। स्थविर मुनिराज ने धर्म का उपदेश दिया। धर्मोपदेश सुन कर पुंडरीक श्रमणोपासक हो गया और अपने घर लौट आया। कंडरीक की दीक्षा ७-तए णं कंडरीए उठाए उढेइ, उट्ठाए उद्वित्ता जाव से जहेयं तुब्भे वदह, जंणवरं पुंडरीयं रायं आपुच्छामि, तए णं जाव पव्वयामि। 'अहासुहं देवाणुप्पिया!' तत्पश्चात् कंडरीक युवराज खड़ा हुआ। खड़े होकर उसने इस प्रकार कहा-'भगवन् ! आपने जो कहा है-वैसा ही है-सत्य है। मैं पुंडरीक राजा से अनुमति ले लूँ, तत्पश्चात् यावत् दीक्षा ग्रहण करूँगा।' तब स्थविर ने कहा-'देवानुप्रिय! जैसे तुम्हें सुख उपजे, वैसा करो।' १. किसी किसी प्रति में ब्रेकिट में दिया पाठ अधिक है। २. भगवती श. ११, १६४ ३. अ. १ सूत्र ११५
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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