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[ज्ञाताधर्मकथा तुम मुझे जीवन से रहित कर दो और सब भाई मेरे मांस और रुधिर का आहार करो। आहार करके उस आहार से स्वस्थ होकर फिर उस अगामिक अटवी को पार कर जाना, राजगृह नगर पा लेना, मित्रों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजनों, संबन्धियों और परिजनों से मिलना तथा अर्थ, धर्म और पुण्य के भागी होना।' ज्येष्ठपुत्र की प्राणोत्सर्ग की तैयारी
३७–तए णं से जेट्टपुत्ते धण्णेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ते समाणे सत्थवाहं एवं वयासी'तुब्भेणं ताओ! अम्हं पिया, गुरू, जणया, देवयभूया, ठावका, पइट्ठावका, संरक्खगा, संगोवगा, तं कहं णं अम्हे ताओ! तुब्भे जीवियाओ ववरोवेमो? तुब्भं णं मंसं च सोणियं च आहारेमो? तं तुब्भेणं तातो ! ममं जीवियाओ ववरोवेह; मंसंच सोणियंच आहारेह, अगामियं अडविंणित्थरह।' तं चेव सव्वं भणइ जाव अत्थस्स जाव पुण्णस्स आभागी भविस्सह।
धन्य-सार्थवाह के इस प्रकार कहने पर ज्येष्ठ पत्र ने धन्य-सार्थवाह से कहा-'तात! आप हमारे पिता हो, गुरु हो, जनक हो, देवता-स्वरूप हो, स्थापक (विवाह आदि करके गृहस्थधर्म में स्थापित करने वाले ) हो, प्रतिष्ठापक (अपने पद पर स्थापित करने वाले) हो, कष्ट से रक्षा करने वाले हो, दुर्व्यसनों से बचाने वाले हो, अत: हे तात! हम आपको जीवन से रहित कैसे करें? कैसे आपके मांस और रुधिर का आहार करें? हे तात! आप मुझे जीवन-हीन कर दो और मेरे मांस तथा रुधिर का आहार करो और इस अग्रामिक अटवी को पार करो।' इत्यादि सब पूर्ववत् कहा, यहाँ तक कि अर्थ, धर्म और पुण्य के भागी बनो।
३८-तएणंधण्णं सत्थवाहं दोच्चे पुत्ते एवं वयासी—'मा णंताओ! अम्हे जेठं भायरं गुरुं देवयं जीवियाओ ववरोवेमो, तुब्भे णं ताओ! मम जीवियाओ ववरोवेह, जाव आभागी भविस्सह।' एवं जाव पंचमे पुत्ते।
तत्पश्चात् दूसरे पुत्र ने धन्य-सार्थवाह से कहा-'हे तात! हम गुरु और देव के समान ज्येष्ठ बन्धु को जीवन से रहित नहीं करेंगे। हे तात! आप मुझको जीवन से रहित कीजिए, यावत् आप सब पुण्य के भागी बनिए।' तीसरे, चौथे और पांचवें पुत्र ने भी इसी प्रकार कहा।
विवेचन-सूत्र ३६ से ३८ तक का वर्णन तत्कालीन कौटुम्बिक जीवन पर प्रकाश डालने वाला है। इस वर्णन से स्पष्ट होता है कि उस समय का पारिवारिक जीवन अत्यन्त प्रशस्त था। सुंसुमा का उद्धार करने के लिए धन्य-सार्थवाह और उसके पांचों पुत्र चिलात का पीछा करते-करते भयंकर और अग्रामिक अटवी में पहुँच गये थे। जोश ही जोश में वे आगे बढ़ते गए जो ऐसे प्रसंग पर स्वाभाविक ही था। किन्तु जब सुंसुमा का वध कर दिया गया और चिलात आगे चला गया तो धन्य ने उसका पीछा करना छोड़ दिया। मगर लगातार वेगवान् दौडादौड़ से अतिशय श्रान्त हो गए। फिर सुंसुमा का वध हुआ जानकर तो उनकी निराशा की सीमा नहीं रही। थकावट, भूख, प्यास और सबसे बड़ी निराशा ने उनका बुरा हाल कर दिया। समीप में कहीं जल उपलब्ध नहीं। अटवी अग्रामिक-जिसके दूर-दूर के प्रदेश में कोई ग्राम नहीं, जहाँ भोजन-पानी प्राप्त हो सकता। बड़ी विकट स्थिति थी। पिता सहित पांचों पुत्रों के जीवन की रक्षा का कोई उपाय नहीं था। सबका