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अठारहवाँ अध्ययन: सुंसुमा ]
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है । यह देखकर कुल्हाड़े के काटे हुए चम्पक वृक्ष के समान या बंधनमुक्त इन्द्रयष्टि के समान धड़ाम से वह पृथ्वी पर गिर पड़ा।
३४- तए णं से धण्णे सत्थवाहे पंचहिं पुत्तेहिं अप्पछट्टे आसत्थे कूवमाणे कंदमाणे विलवमाणे महया महया सद्देणं कुहकुहसुपरुन्ने' सुचिरं कालं वाहमोक्खं करेइ ।
तत्पश्चात् पांच पुत्रों सहित छठा आप धन्य-सार्थवाह आश्वस्त हुआ तो आक्रंदन करने लगा, विलाप करने लगा और जोर-जोर से शब्दों से कुह- कुह (अस्पष्ट शब्द ) करता रोने लगा। वह बहुत देर तक आंसू
बहाता रहा ।
आहार- पानी का अभाव
३५ - तए तं से धणे पंचहिं पुत्तेहिं अप्पछट्ठे चिलायं तीसे अगामियाए सव्वओ समंता परिधाडेमाणा तहाए छुहाए य पराभूए समाणे तीसे अगामियाए अडवीए सव्वओ समंता उदगस्स मग्गणगवेसणं करेति, करित्ता संते तंते परितंते णिव्विन्ने तीसे अगामियाए अडवीए उदगस्स मग्गणगवेसणं करेमाणे नो चेव णं उदगं आसादेइ ।
पांच पुत्रों सहित छठे स्वयं धन्य - सार्थवाह ने चिलात चोर के पीछे चारों ओर दौड़ने के कारण प्यास और भूख से पीड़ित होकर, उस अग्रामिक अटवी में सब तरफ जल की मार्गणा - गवेषणा की। गवेषणा करके वह श्रान्त हो गया, ग्लान हो गया, बहुत थक गया और खिन्न हो गया। उस अग्रामिक अटवी में जल की खोज करने पर भी वह कहीं जल न पा सका ।
धन्य - सार्थवाह का प्राणत्याग का प्रस्ताव
३६ - तए णं उदगं अणासाएमाणे जेणेव सुंसुमा जीवियाओ ववरोविया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जेट्टं पुत्तं धण्णे सत्थवाहे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - ' एवं खलु पुत्ता! सुंसुमाए दारियाए अट्ठाए चिलायं तक्करं सव्वओ समंता परिधाडेमाणा तण्हाए छुहाए व अभिभूया समाणा इमी अगामियाए अडवीए उदगस्स मग्गणगवेसणं करेमाणा णो चेव णं उदगं आसादेमो । तए णं उदगं अणासाएमाणाणो संचाएमो रायगिहं संपावित्तए । तं णं तुम्हं ममं देवाणुप्पिया ! जीवियाओ ववरोवेह, मंसं च सोणियं च आहारेह, आहारित्ता तेणं आहारेणं अवहिट्ठा' समाणा तओ पच्छा इमं अगामियं अडविं णित्थरिहिह, रायगिहं च संपाविहिह, मित्त-णाइय- नियग-सयण-संबन्धिपरियणं अभिसमागच्छिहिह, अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य आभागी भविस्सह । '
तत्पश्चात् कहीं भी जल न पाकर धन्य - सार्थवाह, जहाँ सुंसुमा जीवन से रहित की गई थी, उस जगह आया । आकर उसने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाया । बुलाकर उसने कहा 'हे पुत्र ! सुंसुमा दारिका के लिये चिलात तस्कर के पीछे-पीछे चारों ओर दौड़ते हुए प्यास और भूख से पीड़ित होकर हमने इस अग्रामिक अटवी में जल की तलाश की, मगर जल न पा सके। जल के बिना हम लोग राजगृह नहीं पहुँच सकते। अतएव हे देवानुप्रिय !
१. पाठान्तर - 'कुहकुहस्स परुन्ने' - अंगसुत्ताणि । २. पाठान्तर - ' अवथद्धा' और 'अववद्धा' - अं. सु. ।