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अठारहवाँ अध्ययन: सुंसुमा ]
उद्विग्न हो गया। वह सुंसुमा दारिका को लेकर एक महान् अग्रामिक' (जिसके बीच में या आसपास कोई गाँव न हो ऐसी) तथा लम्बे मार्ग वाली अटवी में घुस गया ।
उस समय धन्य सार्थवाह सुंसुमा दारिका को अटवी के सम्मुख ले जाती देख कर, पांचों पुत्रों के साथ छठा आप स्वयं कवच पहन कर, चिलात के पैरों के मार्ग पर चला अर्थात् उसके पैरों के चिह्न देखता - देखता आगे बढ़ा। वह उसके पीछे-पीछे चलता हुआ, गर्जना करता हुआ, चुनौती देता हुआ, पुकारता हुआ, तर्जना करता हुआ और उसे त्रस्त करता हुआ उसके पीछे-पीछे चलने लगा ।
सुमा पुत्री का शिरच्छेदन
३० - तए णं से चिलाए तं धण्णं सत्थवाहं पंचहिं पुत्तेहिं अप्पछट्ठ सन्नद्धबद्धं समणुगच्छमाणं पासइ, पासित्ता अत्थामे अबले अपरक्कमे अवीरिए जाहे णो संचाएइ सुसुमं दारियं णिव्वात्तिए, ताहे संते तंते परितंते नीलुप्पलं असिं परामुसइ, परामुसित्ता सुंसुमाए दारियाए उत्तमंगं छिंदइ, छिंदित्ता तं गहाय तं अगामियं अडविं अणुपविट्ठे ।
चिलात ने देखा कि धन्य - सार्थवाह पांच पुत्रों के साथ आप स्वयं छठा सन्नद्ध होकर मेरा पीछा कर रहा है। यह देख कर निस्तेज, निर्बल, पराक्रमहीन एवं वीर्यहीन हो गया। जब वह सुंसुमा दारिका का निर्वाह करने (ले जाने) में समर्थ न हो सका, तब श्रान्त हो गया - थक गया, ग्लानि को प्राप्त हुआ और अत्यन्त श्रान्त हो गया। अतएव उसने नील कमल के समान तलवार हाथ में ली और सुंसुमा दारिका का सिर काट लिया। कटे सिर को लेकर वह उस अग्रामिक या दुर्गम अटवी में घुस गया।
३१ - तए णं चिलाए तीसे अगामियाए अडवीए तण्हाए अभिभूए समाणे पम्हुट्ठदिसाभाए सीहगुहं चोरपल्लिं असंपत्ते अंतरा चेव कालगए।
चिलात उस अग्रामिक अटवी में प्यास से पीड़ित होकर दिशा भूल गया। वह चोरपल्ली तक नहीं पहुँच सका और बीच में ही मर गया ।
विवेचन- -सूत्र संख्या २०वें से यहाँ तक का कथानक अत्यन्त विस्मयजनक है। राजगृह जैसे राजधानी नगर में चोरों का, भले ही वे पांच सौ थे, चुनौती और धमकी देते हुए प्रवेश करना, किसके घर डाका डालना है, यह प्रकट करना और डाका डालना, फिर भी नगर-रक्षकों के कानों पर जूं न रेंगना -उनका सर्वथा बेखबर रहना कितना आश्चर्योत्पादक है !
धन और कन्या का अपहरण होने के पश्चात् धन्य; नगर-रक्षकों के समक्ष फरियाद करने जाता है तो उसे 'बहुमूल्य भेंट लेकर जाना पड़ता है। इसके सिवाय भी उसे कहना पड़ता है कि चोरों द्वारा लूटा गया माल सब तुम्हारा होगा, मुझे केवल अपनी पुत्री चाहिए ।
धन्य के ऐसा कहने पर नगर-रक्षक अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर जाते हैं और चोरों को परास्त करते हैं। मगर चुराया हुआ धन जब उन्हें मिल जाता है तो वहीं से वापिस लौट जाते हैं। सुंसुमा लड़की के उद्धार के लिये वे कुछ नहीं करते, मानो उन्हें धन की ही चिन्ता थी, लड़की की नहीं ! लड़की को प्राप्त करने
१. टीकाकार ने 'अगामियं' का 'अग्राम्य' अर्थ किया है। इसका अर्थ अगम्य अर्थात् दुर्गम भी हो सकता है।
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