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________________ ४९४] [ज्ञाताधर्मकथा चला गया है। अतएव हम, हे देवानुप्रियो! सुंसुमा लड़की को वापिस लाने के लिए जाना चाहते हैं। देवानुप्रियो! जो धन, कनक वापिस मिले वह सब तुम्हारा होगा और सुंसुमा दारिका मेरी रहेगी।' चिलात का पीछा किया ___२७–तए णं ते णयरगुत्तिया धण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणित्ता सन्नद्ध जाव गहियाउहपहरणा महया महया उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा रायगिहाओ निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव चिलाए चोरे उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चिलाएणं चोरसेणावइणा सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था। तब नगर के रक्षकों ने धन्य-सार्थवाह की यह बात स्वीकार की। स्वीकार करके वे कवच धारण करके सन्नद्ध हुए। उन्होंने आयुध और प्रहरण लिए। फिर जोर-जोर से उत्कृष्ट सिंहनाद से समुद्र की खलबलाहट जैसा शब्द करते हुए राजगृह से बाहर निकले। निकल कर जहाँ चिलात चोर था, वहाँ पहुँचे, पहुँच कर चिलात चोरसेनापति के साथ युद्ध करने लगे। २८-तए णं णगरगुत्तिया चिलायं चोरसेणावइं हयमहिय जाव पडिसेहंति। तए णं ते पंच चोरसया णगरगोत्तिएहिं हयमहिय जाव पडिसेहिया समाणा तं विपुलं धणकणगं विच्छड्डेमाणा य विप्पकिरेमाणा य सव्वओ समंता विप्पलाइत्था। तए णं ते णयरगुत्तिया तं विपुलं धणकणगं गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव रायगिहे तेणेव उवागच्छंति। तब नगररक्षकों ने चोरसेनापति चिलात को हत, मथित करके यावत् पराजित कर दिया। उस समय वे पांच सौ चोर नगररक्षकों द्वारा हत, मथित होकर, और पराजित होकर उस विपुल धन और कनक आदि को छोड़कर और फेंक कर चारों ओर-कोई किसी तरफ, कोई किसी तरफ भाग खड़े हुए। तत्पश्चात् नगररक्षकों ने वह विपुल धन, कनक आदि ग्रहण कर लिया। ग्रहण करके वे जिस ओर राजगृह नगर था, उसी ओर चल पड़े। २९-तए णं से चिलाए तं चोरसेण्णं तेहिं नगरगुत्तिएहिं हयमहिय जाव पवरवीरघाइयविवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसिंपडिसेहियं(पासित्ता?) भीते तत्थे सुंसुमं दारियं गहाय एगं महं अगामियं दीहमद्धं अडविं अणपवितु। तए ण धण्णे सत्थवाहे सुंसुमं दारियं चिलाएणं अडविमुहिं अवहीरमाणिं पासित्ता णं पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछटे सन्नद्धबद्धवम्मियकवए चिलायस्स पदमग्गविहिं अभिगच्छइ, अणुगच्छमाणे अणुगज्जेमाणे हक्कारेमाणे पुक्कारेमाणे अभितज्जेमाणे अभितासेमाणे पिट्ठओ अणुगच्छइ। नगररक्षकों द्वारा चोरसैन्य को हत एवं मथित हुआ देख कर तथा उसके श्रेष्ठ वीर मारे गये, ध्वजापताका नष्ट हो गई, प्राण संकट में पड़ गए हैं, सैनिक इधर उधर भाग छूटे हैं, यह देख कर चिलात भयभीत और
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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