SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 534
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण] [४८१ (१०) प्रमादमरण-प्रमादवश होकर तथा घोर संकल्प-विकल्पमय परिणामों के साथ प्राणों का परित्याग करना। (११) वशार्त्तमरण-इन्द्रियों के वशवर्ती होकर कषाय के वशीभूत होकर, वेदना-वश होकर या हास्यवश होकर मरना। (१२) विप्रणमरण-संयम, व्रत आदि का निर्वाह न होने के कारण प्राघात करना। (१३) गृद्धपृष्ठमरण-संग्राम में शूरवीरता के साथ प्राण त्यागना अथवा किसी विशालकाय प्राणी के मृत कलेवर में प्रवेश करके मरना। (१४) भक्तप्रत्याख्यानमरण-विधिपूर्वक आहार का त्याग करके यावज्जीवन प्रत्याख्यान करके शरीर त्यागना। (१५) इंगितमरण-समाधिमरण करके दूसरे से वैयावृत्य (सेवा) न कराते हुए शरीर को त्यागना। (१६) पादपोपगमनमरण-आहार और शरीर का यावज्जीवन त्याग करके स्वेच्छापूर्वक हलनचलन आदि क्रियाओं का भी त्याग करके समाधिपूर्वक प्राणोत्सर्ग करना। (१७) केवलिमरण-केवलज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् मोक्ष-गमन करते समय अन्तिम रूप से शरीर-त्याग करना। __उल्लिखित मरणों में से यहाँ और अगली गाथाओं में ग्यारहवें मरण का उल्लेख किया गया है। जो अपनी इन्द्रियों का संवर करता है, उनके वशीभूत नहीं होता किन्तु उनको अपने वश में करता है, उसे वशार्त्तमरण जैसे अकल्याणकारी मरण का पात्र नहीं बनना पड़ता। थण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-गब्बियविलासियगईसु। रूवेसु जे न सत्ता, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१२॥ स्त्रियों के स्तन, जघन, मुख, हाथ, पैर, नयन तथा गर्वयुक्त विलास वाली गति आदि समस्त रूपों में जो आसक्त नहीं होते, वे वशार्त्तमरण नहीं मरते ॥ १२॥ अगरु-वरपवरधूवण-उउमल्लाणुलेवणविहीसु। गंधेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१३॥ उत्तम अगर, श्रेष्ठ धूप, विविध ऋतुओं में वृद्धि को प्राप्त होने वाले पुष्पों की मालाओं तथा श्रीखण्ड आदि के लेपन की गन्ध में जो आसक्त नहीं होते, उन्हें वशार्त्तमरण नहीं मरना पड़ता ॥ १३ ॥ तित्त-कडुयंकसायंब-महुरं बहुखज-पेज-लेझेसु। आसायंमि न गिद्ध, वसट्टमरणं न ते मरए॥१४॥ तिक्त, कटुक, कसैले, खट्टे और मीठे खाद्य, पेय और लेह्य (चाटने योग्य) पदार्थों के आस्वादन में जो गृद्ध नहीं होते, वे वशार्त्तमरण नहीं मरते ॥१४॥ उउभयमाणसुहेसुय, सविभव-हियय-निव्वुइकरेसु। फासेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१५॥ हेमन्त आदि विभिन्न ऋतुओं में सेवन करने से सुख देने वाले, वैभव(धन) सहित, हितकर (प्रकृति को अनुकूल) और मन को आनन्द देने वाले स्पर्शों में जो गृद्ध नहीं होते, वे वशार्तमरण नहीं मरते ॥१५॥
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy