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________________ [ ज्ञाताधर्मकथा अर्थात् - जो इन्द्रयों के वश होकर आर्त्त-पीड़ित होते हैं, उन्हें वशार्त्त कहते हैं । अथवा वश को अर्थात् इन्द्रियों की पराधीनता को जो ऋत - प्राप्त हैं, वे वशार्त्त कहलाते हैं। ऐसे प्राणियों का मरण वशार्त्तमरण है। अथवा इन्द्रियों के वशीभूत होकर मरना, विषयों के लिए हाय-हाय करते हुए प्राण त्यागना वशार्त्तमरण कहलाता है। इन्द्रियों का दमन करने वाले पुरुष ऐसा मरण नहीं मरते ॥ ११ ॥ ४८० ] विवेचन-मरण, जीवन की अन्तिम परिणति है और वह ध्रुव परिणति है । मरण के अनन्तर जन्म हो अथवा न भी हो, किन्तु जन्म के पश्चात् मरण अनिवार्य है, अवश्यंभावी है। जैन परम्परा में मृत्यु को भी महोत्सव का रूप प्रदान किया गया है, यदि वह विवेक, समभाव, आत्मलीनता, प्रभुमयता के साथ समाधिपूर्वक हो । वहाँ मृत्यु के सम्बन्ध में अनेक स्थलों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसका विश्लेषण किया गया है। उत्तराध्ययनसूत्र में लिखा है— बालाणं अकामं तु मरणं असई भवे । पंडियाणं सकामं तु उक्कोसेण सई भवे ॥ - उत्तराध्ययन, अ. ५, गाथा ४ अर्थात् अज्ञानी जीव अकाम-मरण से मरते हैं। उन्हें बार-बार मरना पड़ता है। किन्तु पंडितों अर्थात् ज्ञानी जनों का सकाम-मरण होता है। देह उत्कृष्ट एक बार ही होता है। उन्हें वारंवार नहीं मरना पड़ता - वे अमर - जन्म-मरण से मुक्त हो जाते हैं। इस प्रकार मरण के दो भेद बतलाए गये हैं । कहीं-कहीं बालमरण, पण्डितमरण और बालपण्डितमरण यों तीन भेद किए गये हैं। बाल - पण्डितमरण श्रमणोपासक का कहा गया है, शेष दो मरण पूर्वोक् ज्ञानी और अज्ञानी के ही हैं। भाव पाहुड़ आदि में मरण के सत्तरह प्रकार भी कहे गये हैं। जो इस प्रकार हैं (१) आवीचिमरण - जन्म होने के पश्चात् प्रतिसमय उदय में आए हुए आयुकर्म के दलिकों का निर्जीर्ण होना - प्रतिसमय आयुदालिकों का कम होते जाना । (२) तद्भवमरण - वर्त्तमान भव में प्राप्त शरीर के संबन्ध छूट जाना । (३) अवधिमरण - एक बार भोग कर छोड़े हुए परमाणुओं को दोबारा भोगने से पहले - जब तक जीव उनका भोगना प्रारम्भ नहीं करता तब तक अवधिमरण कहलाता है। (४) आद्यन्तमरण - सर्व से और देश से आयु क्षीण होना तथा दोनों भवों में एक-सी मृत्यु होना । (५) बालमरण – अज्ञानपूर्वक हाय-हाय करते हुए मरना । ( ६ ) पण्डितमरण- समाधि के साथ आयु पूर्ण होना । (७) वलन्मरण - संयम एवं व्रत से भ्रष्ट होकर मरना । (८) बाल - पण्डितमरण - श्रावक के व्रतों का आचरण करके समाधिपूर्वक शरीर त्याग करना । (९) सशल्यमरण - मायाशल्य, मिथ्यात्वशल्य या निदानशल्य के साथ मरना ।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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