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________________ ४६०] [ज्ञाताधर्मकथा विरक्ति हुई है, अतएव हम दीक्षित होना चाहते हैं; केवल द्रौपदी देवी से अनुमति ले लें और पाण्डुसेन कुमार को राज्य पर स्थापित कर दें। तत्पश्चात् देवानुप्रिय के निकट मुण्डित होकर यावत् प्रव्रज्या ग्रहण करेंगे।' तब स्थविर धर्मघोष ने कहा-'देवानुप्रियो ! जैसे तुम्हें सुख उपजे, वैसा करो।' २१८-तए णं ते पंच पंडवा जेणेव सए गिहे तेणेव उवगच्छंति, उवागच्छित्ता दोवई देविं सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी–‘एवं खलु देवाणुप्पिए! अम्हेहि थेराणं अंतिए धम्मे णिसंते जाव पव्वयामो, तुमं देवाणुप्पिये! किं करेसि?' _तए णं सा दोवई देवी ते पंच पंडवे एवं वयासी-'जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया! संसारभउव्विग्गा पव्वयह, ममं के अण्णे आलंबे वा जाव [ आहारे वा पडिबंधे वा] भविस्सइ! अहं पि य णं संसारभउव्विग्गा देवाणुप्पिएहिं सद्धिं पव्वइस्सामि।' । तत्पश्चात् पाँचों पाण्डव अपने भवन में आये। आकर उन्होंने द्रौपदी देवी को बुलाया और उससे कहा-'देवानुप्रिये! हमने स्थविर मुनि से धर्म श्रवण किया है, यावत् हम प्रव्रज्या ग्रहण कर रहे हैं। देवानुप्रिये! तुम्हें क्या करना है?' तब द्रौपदी देवी ने पाँचों पाण्डवों से कहा-'देवानुप्रियो! यदि आप संसार के भय से उद्विग्न होकर प्रवजित होते हो तो मेरा दूसरा कौन अवलम्बन यावत् [या आधार है? या प्रतिबन्ध है ?] अतएव मैं भी संसार के भय से उद्विग्न होकर देवानुप्रियों के साथ दीक्षा अंगीकार करूँगी।' प्रव्रज्या-ग्रहण २१९-तए णं पंच पंडवा पंडुसेणस्स अभिसेओ जाव राया जाए जाव रजं पसाहेमाणे विहरड्। तए णं ते पंच पंडवा दोवई य देवी अन्नया कयाइं पंडुसेणं रायाणं आपुच्छंति। तए णं से पंडुसेणे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! निक्खमणाभिसेयं करेह, जाव पुरिससहस्सवाहिणीओ सिवियाओ उवट्ठवेह।' जाव पच्चोरुहंति। जेणेव थेरा तेणेव, आलित्ते णं जाव' समणा जाया। चोद्दसपुव्वाइं अहिजंति, अहिजित्ता बहूणि वासाणि छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तत्पश्चात् पांचों पाण्डवों ने पाण्डुसेन का राज्याभिषेक किया। यावत् पाण्डुसेन राजा हो गया, यावत् राज्य का पालन करने लगा। तब किसी समय पांचों पाण्डवों ने और द्रौपदी ने पाण्डुसेन राजा से दीक्षा की अनुमति मांगी। तब पाण्डुसेन राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा-'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही दीक्षामहोत्सव की तैयारी करो और हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिविकाएँ तैयार करो। शेष वृत्तान्त पूर्ववत् जानना चाहिए, यावत् वे शिविकाओं पर आरूढ़ होकर चले और स्थविर मुनि के स्थान के पास पहुँच कर शिविकाओं से नीचे उतरे। उतर कर स्थविर मुनि के निकट पहुँचे। वहाँ जाकर स्थविर से निवेदन कियाभगवन् ! यह संसार जल रहा है आदि, यावत् पांचों पाण्डव श्रमण बन गये। चौदह पूर्वो का अध्ययन किया। १. अ. १ मेघकुमार का दीक्षाप्रसंग देखिए
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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