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सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी]
[४५७ चिंता ण जुज (वुच्च ) इ, जाव अम्हे णिव्विसए आणवेइ।'
तत्पश्चात् वे पांचों पाण्डव हस्तिनापुर नगर आये। पाण्डु राजा के पास पहुँचे। वहाँ पहुँच कर और हाथ जोड़ कर बोले-'हे तात! कृष्ण ने हमें देशनिर्वासन की आज्ञा दी है।' ।
तब पाण्डु राजा ने पांच पाण्डवों से प्रश्न किया-'पुत्रो! किस कारण वासुदेव ने तुम्हें देशनिर्वासन की आज्ञा दी?'
तब पांच पाण्डवों ने पाण्डु राजा को उत्तर दिया-'तात! हम लोग अमरकंका से लौटे और दो लाख योजन विस्तीर्ण लवणसमुद्र को पार कर चुके, तब कृष्ण वासुदेव ने हमसे कहा-देवानुप्रियो ! तुम लोग चलो, गंगा महानदी पार करो यावत् मेरी प्रतीक्षा करते हुए ठहरना। तब तक मैं सुस्थित देव से मिलकर आता हूँइत्यादि पूर्ववत् कहना। हम लोग गंगा महानदी पार करके नौका छिपा कर उनकी राह देखते ठहरे। तदनन्तर कृष्ण वासुदेव लवणसमुद्र के अधिपति सुस्थित देव से मिल कर आये। इत्यादि सब पूर्ववत्-समग्र वृत्तान्त कहना, केवल कृष्ण के मन में जो विचार उत्पन्न हुआ था, वही नहीं कहना। यावत् कुपित होकर उन्होंने हमें देशनिर्वासन की आज्ञा दे दी।
२११–तए णं से पंडुराया ते पंच पंडवे एवं वयासी-'दु?णं पुत्ता! कयं कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणेहिं।'
तब पाण्डु राजा ने पांच पाण्डवों से कहा-'पुत्रो! तुमने कृष्ण वासुदेव का अप्रिय (अनिष्ट) करके बुरा काम किया।'
२१२-तए णं पंडू राया कोंति देविं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छ णं तुम देवाणुप्पिया! बारवई कण्हस्स वासुदेवस्स णिवेदेहि-'एवं खलु देवाणुप्पिया! तुम्हे पंच पंडवा णिव्विसया आणत्ता, तुमंच णं देवाणुप्पिया! दाहिणड्ढभरहस्स सामी, तंसंदिसंतुणं देवाणुप्पिया! ते पंच पंडवा कयरं देसं वा दिसिं वा विदिसिं वा गच्छंतु?'
तदनन्तर पाण्डु राजा ने कुन्ती देवी को बुलाकर कहा-'देवानुप्रिये! तुम द्वारका जाओ और कृष्ण वासुदेव से निवेदन करो कि-'हे देवानुप्रिय! तुमने पांचों पाण्डवों को देशनिर्वासन की आज्ञा दी है, किन्तु हे देवानुप्रिय! तुम तो समग्र दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के अधिपित हो। अतएव हे देवानुप्रिय! आदेश दो कि पांच पाण्डव किस देश में या दिशा अथवा किस विदिशा में जाएँ-कहाँ निवास करें?'
२१३-तए णं सा कोंती पंडुणा एवं वुत्ता समाणी हत्थिखंधं दुरूहइ, दुरूहित्ता जहा हेट्टा जाव-'संदिसंतु णं पिउत्था! किमागमणपओयणं?'
तएणंसा कोंती कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवंखलुपुत्ता! तुमे पंच पंडवा णिव्विसया आणत्ता, तुमं च णं दाहिणड्ढभरह [ स्स सामी। तं संदिसंतुणं देवाणुप्पिया ते पंच पंडवा कयरं देसं वा दिसं वा] जाव विदिसिं वा गच्छंतु?
___ तब कुन्ती देवी, पाण्डु राजा के इस प्रकार कहने पर हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर पहले कहे अनुसार द्वारका पहुँची। अग्र उद्यान में ठहरी। कृष्ण वासुदेव को सूचना करवाई। कृष्ण स्वागत के लिए आये। उन्हें महल में ले गये। यावत् पूछा-'हे पितृभगिनी! आज्ञा कीजिए, आपके आने का क्या प्रयोजन है?'
तब कुन्ती देवी ने कृष्ण वासुदेव से कहा-'हे पुत्र! तुमने पांचों पाण्डवों को देश-निकाले का