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________________ सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी] [४५५ २०५–तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्ठियं लवणाहिवइं पासइ, पासित्ता जेणेव गंगा महाणदी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एगट्ठियाए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करित्ता एगट्ठियं णावं अपासमाणे एगाए बाहाए रहं सतुरगं ससारहिं गेण्हइ, एगाए बाहाए गंगं महाणदिं वासट्टि जोयणाइं अद्धजोयणं च वित्थिन्नं उत्तरिउं पयत्ते यावि होत्था। ____तए णं कण्हे वासुदेवे गंगामहाणईए बहूमझदेसभागं संपत्ते समाणे संते तंते परितंते बद्धसेए जाए यावि होत्था। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव लवणाधिपति सुस्थित देव से मिले। मिलकर जहाँ गंगा महानदी थी वहाँ आये। वहाँ आकर उन्होंने सब तरफ नौका की खोज की, पर खोज करने पर भी नौका दिखाई नहीं दी। तब उन्होंने अपनी एक भुजा से अश्व और सारथी सहित रथ ग्रहण किया और दूसरी भुजा से बासठ योजन और आधा योजन अर्थात् साढ़े बासठ योजन विस्तार वाली गंगा महानदी को पार करने के लिए उद्यत हुए। कृष्ण वासुदेव जब गंगा महानदी के बीचोंबीच पहुंचे तो थक गये, नौका की इच्छा करने लगे और बहुत खेदयुक्त हो गये। उन्हें पसीना आ गया। २०६–तए णं कण्हस्स वासुदेवस्स इमे एयारूवे अन्झथिए जाव समुप्पजित्था'अहोणं पंच पंडवा महाबलवग्गा, जेहिं गंगा महाणदी बासटुिंजोयणाई अद्धजोयणंच वित्थिन्ना बाहाहिं उत्तिण्णा। इच्छंतएहिं णं पंचहिं पंडवेहिं पउमणाभे राया जाव णो पडिसेहिए।' तएणं गंगा देवी कण्हस्स इमं एयारूवं अन्झत्थियं जाव जाणित्ता थाहं वियरइ।तए णं से कण्हे वासुदेवे मुहत्तंतरं समासासेइ, समासासित्ता गंगामहाणदिं बासढेि जाव उत्तरइ, उत्तरित्ता जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पंच पंडवे एवं वयासी-अहो णं लुब्भे देवाणुप्पिया! महाबलवगा, जेणं दुब्भेहिं गंगा महाणदी वासटुिंजाव उत्तिण्णा, इच्छंतएहिं पउमनाहे जाव णो पडिसेहिए। उस समय कृष्ण वासुदेव को इस प्रकार का विचार आया कि-'अहा, पांच पाण्डव बड़े बलवान् हैं, जिन्होंने साढ़े बासठ योजन विस्तार (पाट) वाली गंगा महानदी अपने बाहुओं से पार करली! (जान पड़ता है कि) पांच पाण्डवों ने इच्छा करके अर्थात् चाह कर या जान-बूझकर ही पद्मनाभ राजा को पराजित नहीं किया।' तब गंगा देवी ने कृष्ण वासुदेव का ऐसा अध्यवसाय यावत् मनोगत संकल्प जानकर थाह दे दीजल का थल कर दिया। उस समय कृष्ण वासुदेव ने थोड़ी देर विश्राम किया। विश्राम लेने के बाद साढ़े बासठ योजन विस्तृत गंगा महानदी पार की। पार करके पांच पाण्डवों के पास पहुंचे। वहाँ पहुँच कर पांच पाण्डवों से बोले-'अहो देवानुप्रियो! तुम लोग महाबलवान् हो क्योंकि तुमने साढ़े बासठ योजन विस्तार वाली गंगा महानदी अपने बाहुबल से पार की है। तब तो तुम लोगों ने चाह कर ही पद्मनाभ को पराजित नहीं किया।' २०७-तए णं पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–'एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे तुब्भेहिं विसज्जिया समाणा जेणेव गंगा महाणदी तेणेव उवागच्छामो, उवागच्छित्ता एगट्ठियाए मग्गणगवेसणं तं चेव जाव णूमेमो, तुब्भे पडिवालेमाणा चिट्ठामो।'
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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