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________________ ४३४] [ज्ञाताधर्मकथा संकप्पे समुप्पज्जित्था-'अहो णं दोवई देवी रूवेणं जाव [जोव्वणेण य] लावण्णेण य पंचहिं पंडवेहिं अणुबद्धा समाणी ममं नो आढाइ, जाव नो पज्जुवासइ, तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करित्तए'त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पंडुयरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पयणिं विजं आवाहेइ, आवाहित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव विन्जाहरगईए लवणसमुदं मझमझेणं पुरत्थाभिमुहे वीइवइउं पयत्ते यावि होत्था। तब कच्छुल्ल नारद को इस प्रकार का अध्यवसाय चिन्तित (विचार) प्रार्थित (इष्ट) मनोगत (मन में स्थित) संकल्प उत्पन्न हुआ कि 'अहो! यह द्रौपदी अपने रूप यौवन लावण्य और पाँच पाण्डवों के कारण अभिमानिनी हो गई है, अतएव मेरा आदर नहीं करती यावत् मेरी उपासना नहीं करती। अतएव द्रौपदी देवी का अनिष्ट करना मेरे लिए उचित है।' इस प्रकार नारद ने विचार किया। विचार करके पाण्डु राजा से जाने की आज्ञा ली। फिर उत्पतनी (उड़ने की) विद्या का आह्वान किया। आह्वान करके उस उत्कृष्ट यावत् विद्याधर योग्य गति से लवणसमुद्र के मध्यभाग में होकर, पूर्व दिशा के सम्मुख, चलने के लिए प्रयत्नशील हुए। . नारद का अमरकंका-गमन-जाल रचना १४४-तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धदाहिणड्डभरहवासे अमरकंका नाम रायहाणी होत्था। तत्थ णं अमरकंकाए रायहाणीए पउमणाभेणामं राया होत्था, महया हिमवंत वण्णओ। तस्स णं पउमणाभस्स रण्णो सत्त देवीसयाइं ओरोहे होत्था। तस्स णं . पउमणाभस्सरण्णो सुनाभे नाम पुत्ते जुवराया याविहोत्था।तएणं से पउमनाभेराया अंतो अंतेउरंसि ओरोहसंपरिवुडे सिंहासणवरगए विहरइ। __उस काल और उस समय में धातकीखण्ड नामक द्वीप में पूर्व दिशा की तरफ के दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र में अमरकंका नामक राजधानी थी। उस अमरकंका राजधानी में पद्मनाभ नामक राजा था। वह महान् हिमवन्त पर्वत के समान सार वाला था, इत्यादि वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार समझना चाहिए। उस पद्मनाभ राजा के अन्तःपुर में सात सौ रानियाँ थीं। उसके पुत्र का नाम सुनाभ था। वह युवराज भी था। (जिस समय का यह वर्णन है) उस समय पद्मनाभ राजा अन्तःपुर में रानियों के साथ उत्तम सिंहासन पर बैठा था। १४५-तए णं से कच्छुल्लणारए जेणेव अमरकंका रायहाणी जेणेव पउमनाभस्स भवणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स रन्नो भवणंसि झत्तिं वेगेणं समावइए। तएणं से पउमणाभेराया कच्छुल्लं नारयं एजमाणं पासइ, पासित्ता आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता अग्घेणं जाव' आसणेणं उवणिमंतेइ। तत्पश्चात् कच्छुल्ल नारद जहाँ अमरकंका राजधानी थी और जहाँ राजा पद्मनाभ का भवन था, वहाँ आये। आकर पद्मनाभ राजा के भवन में वेगपूर्वक शीघ्रता के साथ उतरे। १. धातकीखण्ड द्वीप में भरत आदि सभी क्षेत्र दो-दो की संख्या में हैं। उनमें से पूर्व दिशा के भरतक्षेत्र के दक्षिण भाग में अमरकंका राजधानी थी। २. अ. १६ सूत्र १४०।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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