________________
४३०]
[ज्ञाताधर्मकथा __ १३०–तए णं वासुदेवमोक्खा पत्तेयं पत्तेयं जावजेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तत्पश्चात् से वासुदेव आदि नृपतिगण अलग-अलग यावत् हस्तिनापुर की ओर गमन करने के लिए उद्यत हुए।
१३१-तए णं पंडुराया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहवित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! हत्थिणाउरे पंचण्हं पंडवाणं पंच पासायवडिंसए कारेह, अब्भुग्गयमूसिय वण्णओ जाव' पडिरूवे।
___ तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार आदेश दिया-'देवानुप्रियो! तुम जाओ और हस्तिनापुर में पाँच पाण्डवों के लिए पाँच उत्तम प्रासाद बनवाओ, वे प्रासाद खूब ऊँचे हों और सात भूमि (मंजिल) के हों इत्यादि वर्णन यहाँ पूर्ववत् कहना चाहिए, यावत् वे अत्यन्त मनोहर हों।
१३२-तएणं कोडुंबियपुरिसा पडिसुणेति जाव करावेंति।तएणं से पंडुए पंचहिं पंडवेहिं दोवईए देवीए सद्धिं सहगयसंपरिवुडे कंपिल्लपुराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव हत्थिणाउरे तेणेव उवागए।
तक कौटुम्बिक पुरुषों ने यह आदेश अंगीकार किया, यावत् उसी प्रकार के प्रासाद बनवाये। तब पाण्डु राजा पाँचों पाण्डवों और द्रौपदी देवी के साथ अश्वसेना, गजसेना आदि से परिवृत होकर कांपिल्यपुर नगर से निकल कर जहाँ हस्तिनापुर था, वहाँ आ पहुंचा।
१३३-तए णं पंडुराया तेसिं वासुदेवापामोक्खाणं आगमणं जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! हत्थिणाउरस्स नयरस्स बहिया वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आवासे कारेह अणेगखंभसयण्णिविट्ठ' तहेव जाव पच्चप्पिणंति।
___ तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने उन वासुदेव आदि राजाओं का आगमन जान कर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा 'देवानुप्रियो! तुम जाओ हस्तिनापुर नगर के बाहर वासुदेव आदि बहुत हजार राजाओं के लिए आवास तैयार कराओ जो अनेक सैकड़ों स्तंभों आदि से युक्त हों इत्यादि पूर्ववत् कह लेना चाहिए।' कौटुम्बिक पुरुष उसी प्रकार आज्ञा का पालन करके यावत् आज्ञा वापिस करते हैं।
१३४-तए णं ते वासुदेवापामोक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छंति।
तए णं से पंडुराया तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं आगमणं जाणित्ता हट्ठतुढे पहाए कयबलिकम्मे जहा दुपए जाव जहारिहं आवासे दलयइ।
तए णं ते वासुदेवपामुक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव सयाई सयाई आवासाइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तहेव जाव विहरंति।
१. अ. १ सूत्र १०३