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सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी]
[४२९ १२६–तएणं धट्ठजुण्णे कुमारे पंच पंडवे दोवइं रायवरकण्णंचाउग्घंटे आसरहंदुरूहइ, दुरूहित्ता कंपिल्लपुरं मज्झंमज्झेणं जाव सयं भवणं अणुपविसइ।
तत्पश्चात् धुष्टद्युम्न-कुमार ने पांचों पाण्डवों को और राजवरकन्या द्रौपदी को चार घंटाओं वाले अश्वरथ पर आरूढ़ किया और कांपिल्यपुर के मध्य में होकर यावत् अपने भवन में प्रवेश किया। विवाह-विधि
१२७-तए णं दुवए राया पंच पंडवे दोवई रायवरकण्णं पट्टयं दुरूहेइ, दुरूहित्ता सेयापीएहिं कलसेहिं मजावेइ, मजावित्ता अग्गिहोमं करावेइ, पंचण्हं पंडवाणं दोवईए य पाणिग्गहणं करावेइ।
तत्पश्चात् द्रुपद्र राजा ने पांचों पाण्डवों को तथा राजवरकन्या द्रौपदी को पट्ट पर आसीन किया। आसीन करके श्वेत और पीत अर्थात् चांदी और सोने के कलशों से स्नान कराया। स्नान करवा कर अग्निहोम करवाया। फिर पांचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ पाणिग्रहण कराया।
१२८-तए णं से दुवए राया दोवईए रायवरकण्णयाए इमं एयारूवं पीइदाणंदलयइ, तंजहा-अट्ट हिरण्णकोडीओ जाव' अट्ठ पेसणकारीओ दासचेडीओ अण्णंच विपुलंधणकणग जाव [रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-सन्त-सार-सावएजं अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं, पकामं भोत्तुं, पकामं परिभाएउं] दलयइ।
___तए णं से दुवए राया ताई वासुदेवपामोक्खाइं विपुलेण असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुष्फवत्थगंध जाव[मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता] पडिविसजइ।
तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने राजवरकन्या द्रौपदी को इस प्रकार का प्रीतिदान (दहेज) दिया-आठ करोड़ हिरण्य आदि यावत् आठ प्रेषणकारिणी (इधर-उधर जाने-आने का काम करने वाली) दास-चेटियां। इनके अतिरिक्त अन्य भी बहुत-सा धन-कनक यावत् [रजत, मणि, मोती, शंख, सिला, प्रवाल, लाल, उत्तम सारभूत द्रव्य जो सात पीढ़ी तक प्रचुर मात्रा में देने, भोगने और विभाजित करने के लिए पर्याप्त था] प्रदान किया।
तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने उन वासुदेव प्रभृति राजाओं को विपुल अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम तथा पुष्प, वस्त्र, गंध, माला और अलंकार आदि से सत्कार करके विदा किया। पाण्डुराजा द्वारा निमंत्रण
__ १२९-तएणं से पंडू राया तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं करयल जाव एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! हत्थिणाउरे नयरे पंचण्हं पंडवाणं दोवइए य देवीए कल्लाणकरे भविस्सइ, तंतुब्भेणं देवाणुप्पिया! ममं अणुगिण्हिमाणा अकालपरिहीणं समोसरह।
तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने उन वासुदेव प्रभृति अनेक सहस्र राजाओं से हाथ जोड़कर यावत् इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय! हस्तिनापुर नगर में पांच पाण्डवों और द्रौपदी का कल्याणकरण महोत्सव (मांगलिक क्रिया) होगा। अतएव देवानुप्रियो ! तुम सब मुझ पर अनुग्रह करके यथासमय विलंब किये बिना पधारना।
१. अ. १ सूत्र १०५