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________________ प्रस्तुत अध्ययन में उत्कृष्ट चित्रकला का भी रूप देखने को मिलता है। कलाकार इतने निष्णात होते थे कि किसी व्यक्ति के एक अंग को देखकर ही उनका हूबहू चित्र उटैंकित कर देते थे। राजा-महाराजा और श्रेष्ठीगणों को चित्रकला अधिक प्रिय थी जिसके कारण विविध प्रकार की चित्रशालाएँ बनाई जाती थीं। प्रस्तुत अध्ययन में कुछ अवान्तर कथाएँ भी आई हैं । जब परिव्राजिका चोक्खा राजा जितशत्रु के पास जाती है, जितशत्रु परिव्राजिका से कहता है क्या आपने मेरे जैसे अन्तःपुर को कहीं निहारा है ? परिव्राजिका ने मुस्कराते हुए कहा, तुम कूपमंडूक जैसे हो और फिर कूपमंडूक की मनोरंजक कथा मूल पाठ में दी गई है। प्रस्तुत अध्ययन में अर्हन्नक श्रावक की सुदृढ़ धर्मनिष्ठा का उल्लेख है। उस युग में समुद्रयात्रा की जाती थी। व्यापारीगण विविध प्रकार की सामग्री लेकर एक देश से दूसरे देश में पहुँचते थे। इसमें छह राजाओं का परिचय भी दिया गया है। मल्ली भगवती के युग में राज्यव्यवस्था किस प्रकार थी, इसकी भी स्पष्ट जानकारी मिलती है। नौवें अध्ययन में माकन्दीपुत्र जिनपालित और जिनरक्षित का वर्णन है। उन्होंने अनेक बार समुद्रयात्रा की थी। जब मन में आता तब वे यात्रा के लिए चल पड़ते। बारहवीं बार माता-पिता नहीं चाहते थे कि वे विदेशयात्रा के लिए जायँ, पर वे आज्ञा की अवहेलना कर चल दिये। किन्तु भयंकर तूफान से उनकी नौका टूट गई और वे रत्नद्वीप में रत्नदेवी के चंगुल में फँस गये। शैलक यक्ष ने उनका उद्धार करना चाहा। जिनरक्षित ने वासना से चलचित्त होकर अपने प्राण गंवा दिये और जिनपालित विचलित न होने से सुरक्षित स्थान पर पहुँच गया। इसी प्रकार जो साधक अपनी साधना से विचलित नहीं होता है वही लक्ष्य को प्राप्त करता है। ' प्रस्तुत कथानक से मिलता-जुलता कथानक बौद्ध साहित्य के बलाहस जातक में है और दिव्यावदान में भी मिलता है। तुलनात्मक अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि कथानकों में परम्परा के भेद से कुछ अन्तर अवश्य आता है पर कथानक के मूल तत्त्व प्रायः काफी मिलते-जुलते हैं। प्रस्तुत कथानक से यह भी पता चलता है कि समुद्रयात्रा सरल और सुगम नहीं थी। अनेक आपत्तियां उस यात्रा में रही हुई थीं। उन अपत्तियों से बचने के लिए वे लोग स्तुतिपाठ और मंगलपाठ भी करते थे। विदेशयात्रा के लिए राजा की आज्ञा भी आवश्यक थी। इष्ट स्थान पर पहुँचने पर वे उपहार लेकर वहाँ के राजा के पास पहुँचते हैं और राजा उनके कर को माफ कर देता था। आर्थिक व्यवस्था में विनिमय का महत्त्वपूर्ण हाथ है। इसलिए व्यापारी व्यापार के विकास हेतु समुद्रयात्रा करते थे। शकुन: । प्रस्तुत अध्ययन में जब जिनपालित और जिनरक्षित समुद्रयात्रा के लिए प्रस्थित होते हैं तब वे शकुन देखते हैं । शकुन का अर्थ 'सूचित करनेवाला है।' जो भविष्य में शुभाशुभ होनेवाला है उसका पूर्वाभास शकुन के द्वारा होता है । आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से भी प्रत्येक घटनाओं का कुछ न कुछ पूर्वाभास होता है । शकुन कोई अन्धविश्वास या रूढ परम्परा नहीं है। यह एक तथ्य है। अतीत काल में स्वप्नविद्या अत्यधिक विकसित थी। शकुनदर्शन की परम्परा प्रागैतिहासिक काल से चलती आ रही है । कथा-साहित्य का अवलोकन करने से स्पष्ट होता है कि जन्म, विवाह, बहिर्गमन, गृहप्रवेश और अन्यान्य प्रसंगों के अवसर पर शकुन देखने का प्रचलन था। गृहस्थ तो शकुन देखते ही थे। श्रमण भी शकुन देखते थे। सहज ही जिज्ञासा हो सकती है कि गृहस्थों की तो अनेक कामनाएँ होती हैं और उन कामनाओं की पूर्ति के लिए शकुन देखें यह उचित माना जा सकता है, पर श्रमण शकुन देखें, यह कहाँ तक उचित है ? उत्तर में निवेदन है कि श्रमण के शकुन देखने का केवल इतना ही उद्देश्य रहा है कि मुझे ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप की विशेष उपलब्धि होगी या नहीं? मैं जिस गृहस्थ को प्रतिबोध देने जा रहा हूँ-उसमें मुझे सफलता मिलेगी या नहीं? शकुन को देखकर कार्य की सफलता
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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