________________
का सहज परिज्ञान हो जाता है और अपशकुन को देखकर उसमें आनेवाली बाधाएँ भी ज्ञात हो जाती हैं। इसलिए श्रमण के शकुन देखने का उल्लेख आया है। वह स्वयं के लिए उसका उपयोग करे पर गृहस्थों को न बतावे । विशेष जिज्ञासु बृहत्कल्पभाष्य, निशीथभाष्य, आवश्यकचूर्णि ' आदि में श्रमणों के शकुन देखने के प्रसंग देख सकते हैं।
देश, काल और परिस्थिति के अनुसार एक वस्तु शुभ मानी जाती है और वही वस्तु दूसरी परिस्थितियों अशुभ भी मानी जाती है। एतदर्थ शकुन विवेचन करनेवाले ग्रन्थों में मान्यता - भेद भी दृग्गोचर होता है ।
जैन और जैनेतर साहित्य में शकुन के संबंध में विस्तार से विवेचन है, पर हम यहाँ उतने विस्तार में न जाकर संक्षेप में ही प्राचीन ग्रन्थों के आलोक में शुभ और अशुभ शकुन का वर्णन प्रस्तुत कर रहे हैं। बाहर जाते समय यदि निम्न शकुन होते हैं तो अशुभ माना जाता है
(१) पथ में मिलने वाला पथिक अत्यन्त गन्दे वस्त्र धारण किये हो । २
(२) सामने मिलनेवाले व्यक्ति के सिर पर काष्ठ का भार I
(३) मार्ग में मिलनेवाले व्यक्ति के शरीर पर तेल मला हुआ हो ।
(४) पथ में मिलनेवाला पथिक वामन या कुब्ज हो ।
(५) मार्ग में मिलनेवाली महिला वृद्धा कुमारी हो । शुभ शकुन इस प्रकार हैं
(१) घोड़ों का हिनहिनाना (२) छत्र किये हुए मयूर का केकारव
(३) बाईं ओर यदि काक पंख फड़फड़ाता हुआ शब्द करे ।
(४) दाहिनी ओर चिंघाड़ते हुए हाथी का शब्द करना और पृथ्वी को प्रताड़ना ।
(५) सूर्य के सम्मुख बैठे हुए कौए द्वारा बहुत तीक्ष्ण शब्द करना ।
(६) दाहिनी ओर कौए का पंखों को ढीला कर व्याकुल रूप में बैठना ।
(७) रीछ द्वारा भयंकर शब्द ।
(८) गीध का पंख फड़फड़ाना ।
(९) गर्दभ द्वारा दाहिनी ओर मुड़कर रेंकना ।
(१०) सुगंधित हवा का मंद-मंद रूप से प्रवाहित होना । *
(११) निर्धूम अग्नि की ज्वाला दक्षिणावर्त प्रज्वलित होना ।
१ (क) बृहत्कल्प - १.१९२१ - २४; १.२८१०-३१
(ख) निशीथभाष्य - १९.७०५४-५५; १९.६०७८-६०९५;
(ग) आवश्यकचूर्णि - २ पृ. २१८
२. ओघनिर्युक्ति
३. पद्मचरित्र ५४, ५७, ६९, ७०, ७२, ७३, ८१
४. पद्मचरित - ७२,८४, ८५/२, ९१, ९४, ९५,९६
४६