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राजकुमार के साथ करेगा जो एक पत्नीव्रत का पालन करेगा। मिथिला के राजकुमार सुरुचि के साथ विवाह की चर्चा चल रही थी। एक पत्नीव्रत की बात को श्रवण कर वहाँ के मंत्रियों ने कहा-मिथिला का विस्तार ७ योजन है और समुच्चय राष्ट्र का विस्तार ३०० योजन है। हमारा राज्य बड़ा है, अतः राजा के अन्तःपुर में १६०० रानियाँ होनी चाहिए। रामायण में मिथिला को जनकपुरी कहा है। विविध तीर्थकल्पों में इस देश को तिरहुत्ति कहा है
और मिथिला को जगती कहा है। महाभारत वनपर्व (२५४) महावस्तु (पृ.१७२) दिव्यावदान (पृ. ४२४) और रामायण आदिकाण्ड के अनुसार तीरभुक्ति नाम है। यह नेपाल की सीमा पर स्थित है, वर्तमान में यह जनकपुर के नाम से प्रसिद्ध है, इसके उत्तर में मुजफ्फरपुर और दरभंगा के जिले हैं, (लाहा, ज्याग्रेफी आव अर्ली बुद्धिज्म पृ. ३१, कनिंघम ऐंश्येंट ज्याग्रेफी ऑव इण्डिया, एस.एस. मजुमदार संस्करण पृ. ७१)। इसके पास ही महाराजा जनक के भ्राता कनक थे। उनके नाम से कनकपुर बसा हुआ है। मिथिला से ही जैन श्रमणों की शाखा मैथिलिया निकली है। यहाँ पर भगवान् महावीर ने छह वर्षावास संपन्न किये थे। आठवें गणधर अकंपित की भी यह जन्मस्थली है। यहीं प्रत्येकबुद्ध नमि को कंकण की ध्वनि को श्रवण कर वैराग्य उत्पन्न हुआ था।
इन्द्र ने नमि राजर्षि को कहा-मिथिला जल रही है और आप साधना की ओर मुस्तैदी से कदम उठा रहे हैं, तब नमि ने इन्द्र से कहा-इन्द्र 'महिलाए डज्झमाणीए , ण मे डज्झइ किंचणं' (उत्तरा. ९/१४)। उत्तराध्ययन की भांति महाभारत में भी जनक के सम्बन्ध में एक कथा आती है। प्रबल अग्निदाह के कारण भस्मीभूत होते हुए मिथिला को देखकर अनासक्ति से जनक ने कहा-इस जलती हुई नगरी में मेरा कुछ भी नहीं जल रहा है-'मिथिलायाम् प्रदीप्तायाम् न मे दह्यति किञ्चन।' (महाभारत १२, १७,१८-१९) महाजनक जातक में भी इसी प्रकार वर्णन मिलता है। 'मिथिलायाम् दह्यमानाय न मे किञ्च अदह्यथ (जातक ६, ५४-५५)। भगवान् महावीर और बुद्ध के समय मिथिला में गणराज्य था।
__चतुर्थ निह्नव ने सामुच्छेदिकवाद का यहाँ प्रवर्तन किया था। दशपूर्वधारी आर्य महागिरि का यह मुख्य रूप से विहारस्थल था। वाणगंगा और गंडक ये दो नदियां प्रस्तुत नगर को घेरकर बहती हैं। मिथिला एक समृद्ध राष्ट्र था। जिनप्रभसूरि के समय वहाँ पर प्रत्येक घर कदलीवन से शोभित था। खीर वहाँ का प्रिय भोजन था। स्थान-स्थान पर वापी, कप और तालाब थे। वहाँ की जनता धर्मनिष्ठ और धर्मशास्त्रज्ञाता थी। जातक के अनुसार मिथिला के चार प्रवेशद्वारों में प्रत्येक स्थान पर बाजार थे। (जातक ६, पृ., ३३०) नगर वास्तुकला की दृष्टि से अत्यन्त कलात्मक था। वहाँ के निवासी बहुमूल्य वस्त्र धारण करते थे। (जातक ४६ महाभारत २०६) रामायण के अनुसार यह एक मनोरम व स्वच्छ नगर था। सुन्दर सड़कें थीं। व्यापार का बड़ा केन्द्र था। (परमत्थदीपकी आनंद थेरगाथा सिंहली संस्करण ।। २७७-८) यह नगर विज्ञों का केन्द्र था। (आश्वलायन श्रोतसूत्र ४३, १४) अनेक तार्किक यहाँ पर हुए हैं जिन्होंने तर्कशास्त्र को नई दिशा दी। महान् तार्किक गणेश, मण्डनमिश्र और वैष्णव कवि विद्यापति भी यहीं के थे। विदेह राज्य की सीमा उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा, पश्चिम में गंडकी और पूर्व में मही नदी तक थी। वर्तमान में नेपाल की सीमा के अन्तर्गत यहाँ पर मुजफ्फरपुर और दरभंगा के जिले हैं । वहाँ छोटे नगर जनकपुर को प्राचीन मिथिला कहते हैं। कितने ही विद्वान् सीतामढी के सन्निकट 'मुहिला२' नामक स्थान को प्राचीन मिथिला का अपभ्रंश मानते हैं । जैन आगमों में दस राजधानियों में मिथिला भी एक है।३
१. जातक (सं. ४८८) भाग ४, पृ. ५२१-२२ २. संपइकाले तिरहुत्ति देसोत्ति भण्णई -विविध तीर्थकल्प, पृ. ३२ ३.-४.वही.पृ.३२ ५.कल्पसूत्र २१३. पृ.२९८ ६. आवश्यक नियुक्ति गा. ६४४, ७. उत्तराध्ययन सुखबोधा, पत्र १३६-१४३ ८. आवश्यकभाष्य गा. १३१ ९. आवश्यकनियुक्ति गा. ७८२ १०. विविध तीर्थकल्प पृ. ३२ ११. विविध तीर्थकल्प पृ.२२ १२. The Ancient Geography of India, पृ. ७१८ १३. स्थानांग १०/११७