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[ज्ञाताधर्मकथा
साध्वी-पर्याय का पालन किया। अन्त में अर्ध मास की संलेखना करके, अपने अनुचित आचरण की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल-मास में काल करके, ईशान कल्प में, किसी विमान में देवगणिका के रूप में उत्पन्न हुई। वहाँ किन्हीं-किन्हीं देवियों की नौ पल्योपम की स्थिति कही गई है। सुकुमालिका देवी की भी नौ पल्योपम की स्थिति हुई। द्रौपदी-कथा
८०-तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जणवएसु कंपिल्लपुरे नामं नगरे होत्था। वन्नओ। तत्थ णं दुवए नामं राया होत्था, वन्नओ। तस्स णं चुलणी देवी, धट्ठजुण्णे कुमारे जुवराया।
उस काल में और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भरतक्षेत्र में पांचाल देश में काम्पिल्यपुर नामक नगर था। उसका वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार कहना चाहिए। वहाँ द्रुपद राजा था। उसका वर्णन भी औपपातिकसूत्रानुसार कहना चाहिए। द्रुपद राजा की चुलनी नामक पटरानी थी और धृष्टद्युम्न नामक कुमार युवराज था। द्रौपदी का जन्म
८१-तए णं सा सूमालिया देवी ताओ देवलोयाओ आउक्खएणंजाव [ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं] चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसुजणवएसुकंपिल्लपुरे नयरे दुपयस्स रण्णो चुलणीए देवीए कुच्छिंसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा चुलणी देवी नवण्हं मासाणं जाव दारियं पयाया।
सुकुमालिका देवी उस देवलोक से, आयु भव, और स्थिति को समाप्त करके यावत् देवीशरीर का त्याग करके इसी जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में, पंचाल जनपद में, काम्पिल्यपुर नगर में द्रुपद राजा की चुलनी रानी की कुंख में लड़की के रूप में उत्पन्न हुई। तत्पश्चात् चुलनी देवी ने नौ मास पूर्ण होने पर यावत् पुत्री को जन्म
दिया।
नामकरण
८२-तए णं तीसे दारियाए निव्वत्तवारसाहियाए इमं एयारूवं नामधेनं-जम्हा णं एसा दारिया दुवयस्स रण्णो धूया चुलणीए देवीए अत्तया, तंहोउणं अम्हं इमीसे दारियाए नामधिजे दोवई। तए णं तीसे अम्मापियरो इमं एयारूवं गुण्णं गुणनिष्फन्नं नामधेनं करिति-'दोवई'।
तत्पश्चात् बारह दिन व्यतीत हो जाने पर उस बालिका का ऐसा नाम रक्खा गया-क्योंकि यह बालिका द्रुपद राजा की पुत्री है और चुलनी रानी की आत्मजा है, अत: हमारी इस बालिका का नाम 'द्रौपदी' हो। तब उसके माता-पिता ने इस प्रकार कह कर उसका गुण वाला एवं गुणनिष्पन्न नाम 'द्रौपदी' रक्खा।
८३–तएणंसा दोवई दारिया पंचधाइपरिग्गहिया जाव गिरिकंदरमल्लीण इव चंपगलया निवायनिव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्डइ।तए णं सा दोवई रायवरकन्ना उम्मुक्कबालभावा जाव' उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था।
तत्पश्चात् पाँच धायों द्वारा ग्रहण की हुई वह द्रौपदी दारिका पर्वत की गुफा में स्थित वायु आदि के
१. अ. १६ सूत्र ३६